संदेश

गायत्री मंत्र

ॐ    भूर्भुवः   स्वः   तत्सवितुर्वरेण्यम्  । भर्गो   देवस्य  धीमहि  धियो  यो  नः  प्रचोदयात्  ।।  अर्थ  - जो  सबका  रक्षक  है ।  समस्त  जगत  का  प्राणस्वरुप  ,  समस्त   दुःखों   को  दूर  करने  वाला  ,  सब  सुखों  का  दाता  है ।  सर्वव्यापक   और   सबको  उत्पन्न  करने  वाला  ,  पापों  का  नाश  करने  वाला  है  । उस  दिव्य  गुणों  से  युक्त  देवता  का  हम  ध्यान  करते  है ।  जो  हमारी बुध्दि  को  उचित  मार्ग  की  ओर  प्रेरित  करे  ।

व - से शुरु होने वाले शब्द

वेद - वेद  शब्द   '  विद् '  धातु  से  '  धञ्  ( अ ) '  प्रत्यय  जोड़कर  बना  है ।  जिसका  अर्थ  है  -  '  ज्ञान  '  वेदों  का  विकास  श्रवण - परंपरा  पर  आधारित  है  ।  अतएव  वेदों  को  '  श्रुति  '  भी  कहा  जाता  है  । विज्ञ - ज्ञानी  ,  विशेषज्ञ  ,  जानकार  ।

गोदान

 उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखित गोदान उपन्यास को सहृदय पाठकों , साहित्यकारों और आलोचकों के मध्य काफी प्रसिद्धी और प्रशंसा प्राप्त हुई है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि प्रेमचंदजी ने अपने इस उपन्यास को पूर्णता  यथार्थ के धरातल पर  स्थित होकर लिखा है। गोदान की कथावास्तु पूर्ण रूप से वास्तविक जगत से संबंधित  है और वह भारतीय कृषक - समाज की असह्य व दयनीय दशा का , उनके संघर्ष और विपत्तियों से घिरे कारुणिक जीवन का कटु यथार्थ प्रस्तुत करती है।

इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी     शक्ति     हमें     देना     दाता , मन   का   विश्वास   कमजोर    होना ।

कर्मवीर

 देख कर बाधा विविध , बहु विघ्न घबराते नहीं । रहे भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं । काम कितना ही कठिन क्यों न हो उकताते नहीं । भीड़ में चंचल बने जो , वीर दिखलाते नहीं । हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले । सब जगह सब काल में वे हीं मिले फूले - फले ।

पारिभाषिक शब्दावली

 ●   पारिभाषिक शब्दावली Anxiety                          -    चिन्ता Author                            -   लेखक  Approaching                 -    पहुँचना Affixed                           -    संबंध्दीकरण Answer                          -    उत्तर 

आचरण की सभ्यता निबंध का सार मेरे अपने शब्दों में

आचरण की सभ्यता - सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित एक ललित भावात्मक निबंध है । जो व्यक्ति के आचरण को प्रमुख बिंदु मानते हुए , उसके सुविकास की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है । सभ्यता की धुरी है व्यक्ति का आचरण उसका व्यवहार , व्यक्ति समाज की वृहत परिणिति अथवा उसकी एक इकाई है । व्यक्ति का आचरण उसके वैयक्तिक जीवन तथा उन्नति के अवसरों को हीं नहीं प्रभावित करता है वरन् पूरे समाज को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसकी उन्नति और अवन्नति का एक निर्धारक तत्व बन जाता है ।