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अपनी सोई हुई चेतना को जगाओ

हीन  ,  मगर  नहीं  किसने  कहा  कि  तुम  हीन  हो  और  अगर  कोई  अपने  में  कहता  है  तो  कह  ले  ,  किसी के कहने  मात्र  से  तो  कोई   हीन  नहीं  हो  जाता  है , हीन  तो  तुम  तब  कहलाओगे   जबकि  तुम  अपने  को  हीन  मानोगे  , अपने  भीतर  छिपे  आत्मविश्वास  और   रचनात्मिका  शक्ति को जब  तक  तुम  संबल  न   दोगे  ,  तब  तक   प्रभु  भी  कुछ  नहीं  कर  सकते  ,  क्योंकि   ईश्वर  की   मदद   पाने  के  लिए  पहले  हमें   अपने-आप   से   प्रयास  करना  पड़ता  है  ।

जिंदगी की राहें

हर दिन की तरह आज का भी दिन अपने में नया है अनेक संभावनाओं अवसरों को लिए आज का दिन भी दरवाजे पर दस्तक दिए खड़ा है , कल पर छोड़कर क्या फायदा कल किसने देखा है ? तो फिर जरुरत है तो बस अपने आज को संवारने की , बीते कल से उतना ही लो जितना की ठीक हो जिंदगी की गाड़ी अपनी सही रफ्तार के साथ चलती रहे वर्ना ज्यादा बोझा लेकर चलने से सफर का कोई मतलब ही नहीं रहे जाता है

सुप्रभात !

सुप्रभात ! आज मेरे ब्लॉग प्रियाहिंदीवाइब की प्रथम वर्षगांठ है 9 जुलाई , 2024 को स्वरुप में आए ब्लॉग की आज 9 जुलाई , 2025 को पूरे एक वर्ष हो गए है । शुरुआत के दिनों से लेकर अब तक का सफर केवल रचनाओं के प्रकाशन तक ही सीमित न रहा , बल्कि इस सफर में अनेक मोड़ आए और उनके साथ ही अनेक अनुभव भी कई नई चीजें सीखने को मिली , ब्लॉग जगत

चिंता नहीं चिंतन करो

चिंतन समाधान प्रस्तुत करता है । जो जीवन के हर मोड़ हर परिस्थिति में समस्याओं से कैसे निपटा जाए ? कैसे हम स्वयं को भीतर से सशक्त करे ? कैसे हम अपने जीवन को सार्थक कर सकते है ? कैसे स्वयं और दूसरों के मध्य सामंजस्य सुनिश्चित कर सकते है ? इत्यादि तमाम प्रश्नों का उत्तर है - चिंतन । चिंतन यानी किसी चीज को गहराई से समझना उसके हरेक पहलू पर व्यापक दृष्टिकोण के साथ विचार करना और यह तय करना कि यदि हम ऐसा ना करके कुछ ऐसा करे की जो प्रतिकूल परिस्थितयाँ हमारे समक्ष आयी है , क्यों ना उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करे , क्यों ना उसमें कुछ रचनात्मक खोज निकाले और क्यों न धैर्य से काम लेते हुए स्वयं को भीतर से दृढ़ बनाया जाए ।

कला : एक अंतस उद्भावना

कला देखते ही बनता है इनका जादू । अपने में कितना कुछ समेटे रहती है । एक तरफ ये हमारी विरासत अमानत धरोहर है , तो दूसरी तरफ मानव मन की रचनार्धिमता व उसके रचनाशील प्रधान गुण की सर्जना है । अतीव भावों को ग्रहण कर , एक के लिए क्रमशः अलग - अलग भाव , तो नजरिया भी अलग - अलग नेत्रों को अभिरामता आश्चर्य का सुख ही नहीं मिलता इन्हें देखकर बल्कि एक उद्भावना मन को गहरे उतरती है।

बस यूँही

दिन   खुशहाल  है ।  हर  उम्मीद   खुशी  पर  टिकती  है ।  स्वप्न  भी   अपने   अनरुप  गढ़े  जाते   है  ।   वास्तविकता  से    दूर  या  उसका    मिलाजुला    रुप    या   किसी  अन्य  दृष्टि   से    संसार    को     देखने   की   चेष्टा  या   उससे    दूर  जाना  ।  यथा र्थ   को  खिंचना ,  या   जो    घटित   हो   रहा  है  या  जो  शंकित    घटना    मन   को   उद्वेलित  कर  आंदोलित    करती  है  ,   उससे    भागना   या पलायन  या  वास्तविक    को   ना  देख  पाना  ;   खरबूजा   हम...

आचरण की सभ्यता निबंध का सार मेरे अपने शब्दों में

आचरण की सभ्यता - सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित एक ललित भावात्मक निबंध है । जो व्यक्ति के आचरण को प्रमुख बिंदु मानते हुए , उसके सुविकास की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है । सभ्यता की धुरी है व्यक्ति का आचरण उसका व्यवहार , व्यक्ति समाज की वृहत परिणिति अथवा उसकी एक इकाई है । व्यक्ति का आचरण उसके वैयक्तिक जीवन तथा उन्नति के अवसरों को हीं नहीं प्रभावित करता है वरन् पूरे समाज को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसकी उन्नति और अवन्नति का एक निर्धारक तत्व बन जाता है ।

लोक संस्कृति और लोकरंग

 लोक संस्कृति की जीवंतता का कारण उसकी सरलता, मधुरता, समाज का आपसी  सहकार का सुन्दर समन्वय और संस्कृति की जीवंतता का रंग है। यदि आज इस आधुनिक परिवेश में भी लोक संस्कृति ने अपनी सत्ता को बनाये रखा है, तो इसका कारण यह है कि उसके साथ लोक जीवन जुड़ा हुआ है। आज के इस परिवेश में लोक जीवन तेजी से बदल रहा है, पर एक स्थिरता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, अपनी कला के प्रति गहन रुचि, अपनी विरासत को विकास की ओर ले जाने की इच्छा ने इस लोक संस्कृति से जुड़े हुए इन सुन्दर रंगों को बचाकर रखा है ।

गीता का सार्वभौमिक महत्व और उसमें वर्णित गुरुपद की महत्ता

भगवद्गीता का उपदेश किसी एक विचारक या विचारकों के किसी एक वर्ग द्वारा सोची गई प्रवृत्ति या उभरती हुई किसी अधिविघक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, यह उपदेश एक ऐसी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानवता में विश्वास करती ह   गीता भगवान श्रीकृष्ण की विमलवाणी के प्रवाह में एक ऐसा उपदेश है, जिसकी सार्वभौमिकता अक्षुण्ण है और जो धर्म के सच्चे रूप में मानव धर्म को प्रतिबिम्बित करता है।