आचरण की सभ्यता निबंध का सार मेरे अपने शब्दों में


आचरण की सभ्यता - सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित एक ललित भावात्मक निबंध है । जो व्यक्ति के आचरण को प्रमुख बिंदु मानते हुए , उसके सुविकास की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है । सभ्यता की धुरी है व्यक्ति का आचरण उसका व्यवहार , व्यक्ति समाज की वृहत परिणिति अथवा उसकी एक इकाई है । व्यक्ति का आचरण उसके वैयक्तिक जीवन तथा उन्नति के अवसरों को हीं नहीं प्रभावित करता है वरन् पूरे समाज को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसकी उन्नति और अवन्नति का एक निर्धारक तत्व बन जाता है ।
आचरण का प्रभाव बड़ी व्यापकता और गहनता के साथ जीवन से जुड़ा हुआ है । जीवन का हर क्षेत्र इसकी परिधि से बंधा हुआ है । आचरण की कुमानसिकता , कटुता , कुत्सित वृत्ति कर्कशता का भण्डार है , जो अंधकार और अज्ञान वृत्ति से परिपूर्ण और दुःख का कारण बनती है । जो व्यक्ति को पथभ्रष्ट , क्रोधी , विवेकशून्य बना देती है । वहीं व्यक्ति का सु - आचरण न केवल वैयक्तिगत उन्नयन को विस्तार देता है अपितु सामाजिक उन्नयन की राह भी खोल देता है । हृदय में उदारता , सहिष्णुता , समन्वयात्मकता के गुण प्रकाशित कर मार्ग का पथप्रदर्शक बन जाता है । समत्व का महान गुण जो विषम परिस्थितियों में भी मार्ग से विचलित नहीं होने देता है । सदाचरण का हीं सुपरिणाम है । अतएव ये उदात्त और प्रशंसनीय गुण आचरण की सद्वृत्ति का ही परिणाम है । जिसके बल पर कोई समाज महान बनता है । वहाँ की सभ्यता ऊँची उठती है और अक्षुण्णता एवं अखण्डता को प्राप्त करती है । महत्तवशाली की पदवीं प्राप्त हो सके इसलिए यह आवश्यक है कि महत्तवशील आचरण के सुविकास की ओर आगे बढ़े उसे अपने जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनाए । जीवन का हर पथ इसकी सद्ज्योत से प्रकाशित होकर हर स्तर पर उन्नयन का साधन बनेगा और साध्य ईश्वर की प्राप्ति का महान स्त्रोत भी ।








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