स्नेह ममता का
प्रातः की धूप लगती है प्यारी
वो माँ बन लुटाने जो आ जाती है
इस जग पर अपनी ममता सारी
आँचल में भर लेती है अपने प्यारों को
जीवन को सँवारती है सहलाती है
प्यार भरी थपकी दे नित
निंदिया भरे लोचन को जगाती है
सहारा बन आगे पथ दिखलाती
है प्यार उसे बच्चों से
है प्यार उसे बड़ों से
है प्यार उसे वृध्दों से
है प्यार उसे वृक्षों तृणों से
है प्यार उसे जंगल से
है प्यार उसे पशु - पक्षियों से
है प्यार उसे नदियों से
है प्यार उसे विस्तृत फैले घास
के मैदानों से
है प्यार उसे खेतों के धानों से
है प्यार उसे गिरि के विशाल पर्वतों से
है प्यार उसे मिट्टी से
है प्यार उसे जड़ - चेतन के हर कण से
जो मन का अँधियारा मिटाती है
तम को दूर भगाती
जो स्नेह ममता का लुटाती ।
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सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंधूप को इतना प्यार
मिलता है किससे ?
जो वह लुटाती है
युग-युग से सूर्य-किरण,
धरा को जिलाती है !
आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया मेरे मन में प्रसन्नता और प्रेरणा का संचार करती है । आपने प्रकाशित कविता पर अपने विचार भाव व्यक्त कर मेरे विचारों - भावों को और अधिक गहराई से अनन्त की ओर उड़ान भरने का एक प्यारा स्नेहसिक्त संदेश और उत्साह दिया । बिल्कुल प्रातः की मीठी धूप की तरह एक प्यारी सी थपकी इसके लिए आपका भावपूर्ण अन्तःकरण से धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंकविता अगर शब्दों की धमाचौकड़ी हो
जवाब देंहटाएंभाव कविता के गूंगे हो जाते हैं
सादर