अनेकों रवों की प्रार्थना
कुछ पल इस हरी भूमि पर बीत जाए ।
कुछ न कहके कुछ मन को कहने दो ।
मेरे ईश्वर तू कितना बड़ा चितेरा है ।
तूने कितने ही रंग सजाये इस दुनिया में
हरेक को अपने एक अलग अंदाज में सजाया
क्या खूबी से हरेक रेखा रंग में प्राण
भरे । तू कितना बड़ा चितेरा है ।
भाव को अन्तर में छू ले
पल में मुस्कान मुख पे सजाये ।
कुछ न भी कहे । तेरी सर्जना में
दिन - रात मेरा , तेरी आराधना के मंगल स्वर
गीत गाए ।
निशदिन तेरी अर्चनबेला में मन के सुंदर
सुवासित फूल चढ़ाये ।
मैं भूल गई कितनी बार ..... आह !
तुम अपनी सृष्टि के कृपानिधान ।
मेरी भारी पाप की गगरी हरने
आये तुम मेरे द्वार सुन करुण पुकार ।
भटकन में अब तक थी ।
भूल गई थी प्रीत मन की करुणा है ।
अस्पष्ट था रुदन स्वर , वंचित थी अपने से
करने तुम उध्दार ! ओ जग पालनहार !
तुम आये इसी हरी भूमि पे करने को
मंगलविधान ।
अनेकों रवों की प्रार्थना सुन
बन विश्व जगपालनहार !
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