ईश्वर की कृति

ईश्वर    की    कृति   ,

हरेक   कृति ,   जिसको   उसने   रचा   है ,

अपनी   कल्पना  ,  अपने  विचारों  - भावों   को ,

अपने   हृदय   के   अनहत  -  नादों   को  ,

अनछुए  -  अनकहे   आवेगों  को  ,

समेटे   जिसने   अपनी   सर्जना   का 

अद्भुत   संसार   बसाया   है ।

अपनी   तूलिका  से  

नाना   रंग   भरे  , 

एक   विलक्षण   विष्षण - सा 

अंतर   सौंदर्य   बिखेरा   है । 

अपनी  कृति   के   हर   कण   में   व्याप्त   हो , 

अपने   में   परिव्याप्त   हो   उसने 

हरेक   चेतना   ,   हरेक   जड़  को  ,

अपना   अभिभूत   तत्व   दिया ।

अपनी   हरेक    तार   को ,

सृष्टि   -  कार    ने    

अपनी  -  अपनी    विशिष्टता   का , 

अपनी   कृति    को    अनोखा ,

अतुलनीय    सौंदर्य     दिया  ।

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