संदेश

दीप लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विश्व में अटल सत्य के चिरवास का .!

ओ !  इतिहास   की  घड़ियाँ  चुप   खड़ा   निस्तब्ध  क्या  तूने  पहने  ली  बेड़ियाँ  अचंभा  में  पड़ा शून्य  को  तकता निर्जन  में  अकेला  जर्जर  वृध्द  ? परिवर्तन  की  आंधियाँ बदल  देती  है  कितना  कुछ

दिवाली की रौनक तभी सफल बने

सर्द दिनों की रुहानी आहट लिए मौसम का रुख बदला है सिमटा - सिमटा दिन  गुलाबी ठंडक लिए  सूरज आसमाँ के पट पर खिलने लगे गुलाब  मंजरी पर पुलकित पुष्प

जनपथ बहुराती

संकेत संकेतक कभी शुभ समाचार की कभी किसी अनहोनी अनिष्ट की दोनों ही रहस्य भविष्य के गर्भ में छिपे है जिसको उस त्रिकालदर्शी के सिवा मैंने क्या किसी ने भी नहीं देखा , तो सुख- दुख के तराजू बराबर है दिन के बाद रात, रात के बाद दिन कोई बाधा नहीं , फिर अस्वीकार कैसा

हम सब एक परिवार है

जरुरी नहीं की हर गीत लिखा जाए  कुछ गीत बस यूँही गुनगुना लिया जाए खुली हवा में खुले जीवन के साथ  हर बाधा से मुक्त अविमुक्त  स्वतंत्र खग की उड़ान  अनन्त व्योम में विचरते बादलों की भाँति बिना व्यक्त किए व्यक्त कर देने की बात  हवाओं की शीतल छाँह में घुलते शब्द

काश का भरोसा काँच सा

काश   से   निकल   बाहर खुली  हवा  में  खुद  को  हहराना  दो  थोड़ा - थोड़ा बंद   रहकर    सीलन   की   बदबू    छाई   की बारिश    से    जमीन   पर    जम   आई   काई   है दोष   नहीं   किसी  का   ,  काश  का   भरोसा  काँच  सा

जिसमें मैं बंधी बँधकर जो दीप बनी

वह बिंब जिसमें मैं बँधी , बँधकर भी स्वतंत्र सदा  आत्मरुप निर्बंध रही , वही सच्चा बंधन था जिसे मैंने कभी तोड़ा नहीं  जिसका मोह मैंने कभी छोड़ा नहीं आँधियों की झंझा में भी उर में जलता रहा विश्वास का दीप अखंड

सच्चे मन से

यहीं   समय   है  ,  सही   समय  है जो   गुजर    गया  ,  वो   बीता   कल   था जो    अभी    प्रकट    नहीं   है ,   उसकी  चिंता ,   उसका   संवरण   करना    व्यर्थ   है , दुश्चिंताओं    की    ज्वालाओं   में   जल   ईर्ष्या की    अग्नि     जलाना    और   भी   दाहक   है , सफलताओं    की     चाह     में  , असफलता     की     सीख    को    भूलाना

आशादीप

अन्तस   को   हिलोरे   दे जग    ये    सब   कुछ  नव   नित   नूतन परम    विनीत    कृपालु जगकरता     कारण   हो  कार्य   हो   जगजीवन   का    चक्र  तुम्हीं    से  ,    सृष्टिकाल    के बंधन   ,   लगे   क्या   वास्तव   है  ? यथार्थ    है   ?   या   फिर   इसके ऊपर    कोई    और    ही    चमत्कार  शीत   लहरी    सी    मन    कँपकँपाये कहाँ     उद्गम  ,  कहाँ   से   बह   निकली   थी

अन्तर्मन की लौ

मैं   दीप   बन   जलूँगी पथ   प्रकाश   बन   हर   तम  में   लौ  भरुँगी । झंझा  हो   तूफां   आँधी   बिजली  पानी  हो   या बरसात    ,   भाव  न   मिटे   मन   का   श्वास   माला   का   फेर    बदल   जाए   रुप  बदले   पर   स्वरुप   वहीं   रह   जाए  ।

प्रातः उजियारे दीप जला

प्रातः    उजियारे    दीप    जला कनक -  मनिमय   परिकुंर    शोभा  -  शिखर   बना । हाँस - विहाँस - परिहास    कमल   खिले भ्रमर    गुंजित    रव सखी !  पीछे -   पीछे    चले । वनदेवी  -   अर्चन   क्षण    का    कण- कण    सौभाग्य     भरा  ! हर    शब्द    लय -  तालबध्द    संगीत   भरा  , जो    सबका    मधुर   सहकार   बना ।

दीप - भाव

मौन    रहा   ,  और   कुछ   न   कहा .. शब्दों    को    निः शब्द     किया  उत्तर    को    ही    प्रश्न   किया  ? एकांतर   सीधी   सरल   रेखा   को    अन्वांतर    का    रुप    दिया । त्रासदी    की     विकट    वेदना  , विश्व   करुणा    ने    अश्रुपात   किया ।