काश का भरोसा काँच सा

काश   से   निकल   बाहर

खुली  हवा  में  खुद  को  हहराना  दो  थोड़ा - थोड़ा

बंद   रहकर    सीलन   की   बदबू    छाई   की

बारिश    से    जमीन   पर    जम   आई   काई   है

दोष   नहीं   किसी  का   ,  काश  का   भरोसा  काँच  सा

दिवास्वप्न  सा    जो    यथार्थ  को  पा  टूट  जाए 

कर्म  ही   जीवनसेतु   कर्म  ही   प्रकृति   का   नियम

खुद   को  असल   जीवन   परिधि   से   ले   जाकर  बाहर   

काश  के   मायाजाल  में   क्योंकर   उलझे  ?

हर   मोड़   पर   एक   सच्चाई  है

उम्मीदों   के   दीप   भी   है   जगमग

रोशनी   उसी   से     जीवन   में   आई   है

कुछ   नहीं    जानता   जो   ,   परिस्थितयाँ

उतार - चढ़ाव   की   इसीलिए   तो   लेती   है  आकार  , कि   वह  

सक्षम   बने ,   और   के   जीवन  में  भी   एक  नई   खुशहाली  लाए 

पेचीदे   फंदों  में   काश   पाश  सा  जकड़ता   एक  झूठा -  सच  है ,

हौंसला  तो   कर्म   पर   ही   रख ।




टिप्पणियाँ

  1. उम्मीद, हकीकत और कर्म तीनों को ऐसे जोड़ा है कि सोचने पर मजबूर कर दिया। आपकी लिखाई में न कोई बनावट है, न भारी शब्दों का दिखावा, बस एक साफ़, सच्चा आइना है। हर इंसान कहीं न कहीं इसी काश में अटका होता है, पर आपने बड़ी खूबसूरती से बताया कि असली ताक़त तो कर्म में है।

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  2. कर्म पथ अच्छा है ...
    सच है काश एक जाल है ... सत्य पर पड़ा पर्दा ...

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