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जिस दिन ...!

भाव   भी   मेरा   अभाव   भी   मेरा जिस   दिन   इन    सबको   त्याग   दूँगी हर   बंधन    से     मुक्त    स्वयं    से    उन्मुक्त    हो असीम    अंतहीन    परम   चैतन्य   से मिल     अगाध    आनंद - कुँज    को पाऊँगी    अपनी    सितार   में   मिला   उसे मधुर    राग    जगजीवन    विश्राम   का

मरा मरा करके

मरा    मरा       करके      तुमने   राम      नाम      बतलाया  तुतुलाती     बोली      को     तुमने   इतना     कुछ      समझाया  थाम     के      मेरी     उँगली    मुझको     काँटों    में    चलना    सिखलाया  अकेले    पथ     पर     भी     निडर    हो आगे     बढ़ना     सिखाया सुख  -   दुख    जीवन   का   अभिन्न    भाग   है

शब्दों को रहने दो !

शब्दों   को   रहने   दो शब्दों    को    कुछ    ना    कहने   दो ये   भावों   की    वीणा   की   झंकार   है  ये   अन्तर्मन   का   मधुर   सहकार्य   है  ना   सुन   कर  भी   कैसे   अनसुना   करो  के , कहे   कि    इस   वीणा   की   हरेक   तार

मुझ थके को

धरा   पर   स्वप्न    सजाए   जीता   है   जीव खोजता    है    परमेश्वर    को कहाँ   मिलेंगे   ईश मन   का    हारा   तन    की    दुर्बल   छाया  आँचल    मलिनता    का  दंभ   द्वेष   और   घृणा   का   खारा   सागर ईर्ष्या   की   अग्नि   प्रचण्ड   नेह   दाहक

सच्चा संघर्ष

सच्चा   संघर्ष   जीवन   का  , अपने   से   बढ़कर   पर  के  हित  का , भावबोध  ,  जीवन  दृष्टि   विस्तार  का , शून्य  से  हो  संतृप्त  आत्मज्योति  प्रकाश  का ,  निर्विकार   मुक्त   चेतना । साकार  से   निराकार   का ,  अनन्त  में व्याप्ति   उस   एक   असीम   पारावार  का , मन   बन   कहती   जो   अनेक   कथा    कथा   -   सूत्राधार   का ।

राम नाम का उर में ध्यान धरे

बन   न   क्लांत   ओ   विवर   बीच पथिक    अनजान निशा   की    गहन   अंध   में भी   खिलती   चंद्र   ज्योत्सना सितारों    की    जगमग   से   सजता   है व्योम    का     अनन्त    पट्टचित्र । श्वेत    कमल    की    पुष्प   शोभा   सी कुमदिनी    साधना    सा    मन   बनाती ।

तुम भूल न जाना जीवन को

सूने आकाश  में  एक अकेली पतंग   जीवन  को भूल  न  जाना  निर्जन पथ अकेला  ,  नही  स्नेहबंधन डोर  न  ममता  की  कोर , अत्यन्त  यह 

अनेकों रवों की प्रार्थना

कुछ  पल  इस  हरी  भूमि  पर  बीत  जाए ।  कुछ  न  कहके  कुछ   मन  को  कहने  दो । मेरे  ईश्वर   तू   कितना  बड़ा  चितेरा  है । तूने  कितने  ही  रंग   सजाये  इस  दुनिया  में हरेक  को  अपने  एक  अलग  अंदाज  में  सजाया   क्या   खूबी   से   हरेक   रेखा  रंग   में   प्राण   भरे  ।   तू    कितना   बड़ा   चितेरा    है । भाव   को    अन्तर   में   छू   ले   पल   में   मुस्कान   मुख   पे   सजाये । कुछ   न   भी   कहे   ।   तेरी   सर्जना   में

अन्तर्मन की लौ

मैं   दीप   बन   जलूँगी पथ   प्रकाश   बन   हर   तम  में   लौ  भरुँगी । झंझा  हो   तूफां   आँधी   बिजली  पानी  हो   या

वाणी वाग्शेवरी मधुर संगीत भरी !

वाणी    वाग्शेवरी    मधुर    संगीत   भरी शक्ति   की   स्वरुप   देवी  , चैतन्यता   का    प्रतिरुप    देवी   शारदा  । प्रणत    शिखर    नित   स्तुतिगान   लय   भरा ज्योत    प्रकाश    मन    में    सजा संकल्प    में     हर     वचन    कुशल   बना ।

हमको मन की शक्ति देना

हमको   मन   की   शक्ति   देना   मन   विजय   करें  ,   दूसरों   की   जय  से   पहले   खुद   को   जय  करें  ।

वाणी वन्दना

माँ   शारदे  !    मैं   तेरी   सेविका  । मैं   अति   अबुध  अज्ञान  हूँ । तेरी  चरण  धूलि  समान  हूँ ।

हे शारदे माँ

  हे  शारदे  माँ ,  हे   शारदे  माँ  । अज्ञानता  से  हमें  तार  दे  माँ  ।

सरस्वती प्रार्थना

मा  शारदा  शारदाम्भोजवदना  वदनाम्बुजे  । सर्वदा  सर्वदास्मांक  सन्निधिं  क्रियात ।।

ज्ञान की देवी तू हम सबको प्यार दे

जीवन  को   आधार  दे ,  जीवन  को  सँवार  दे । निस्सार  को  सार  दे ,  निराकार  को  तू  साकार  करे । समता  का  तू  संवाद  दे , भेदभाव  के  बंधन  को  तू  तार  दे।

सरस्वती की वीणा

अंधकार   का  नाश   करे  ,  वो  उज्ज्वलता  का  संचार  करे  । तम  में  डूबे  पथ  का ,  वो  संधान  करे ।

सरस्वती वन्दन : वन्दिता भगवती शारदे

  वन्दिता भगवती शारदे    माँ ! बुध्द दे , स्वर शुध्द दे ! वाणी मधुर हो , आखर बने अरथमय ज्ञान और भक्ति की ज्योत जगे  वन्दिता भगवती शारदे   माँ ! बुध्द दे , स्वर शुध्द दे !

सरस्वती वंदना

 वर दे वीणा वादिनी वर दे ! वर दे वीणा वादिनी वर दे ! प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मंत्र नव  भारत में भर दे !