माँ सीता संग विराजे रामहृदयकुँज

चलता    रहता    अंतहीन    राहों    में

क्या   पाने    की    तलाश    इसे

जिसको    पाना  ,  जिसको   ढूँढा   जाना  है ,

वह  तो   अन्तर्उर    में    साक्षात   विराजा  है ।

किन   ख्यालों   में   खोये   हुए 

किन    आश्चर्यों    में    जा    पड़े

उफनता    सा     ज्वार  ,   मन    को 

कहाँ      मिले      आराम  

क्यों    हैरान   परेशान    खोजते    फिरते

हो     बने     बावरे  ,   भीतर   भी   तो

एक    बार     होकर    आओ  ।

एक    नजर     वहाँ     भी   तो   दौड़ाओं  ।

अन्तर्मन    में     मिलेंगे    ज्योतिपुँज

माँ   सीता    संग    विराजे    रामहृदयकुँज ।।

  

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