खिड़की खोल दो
खिड़की खोले बिना दीदार
कैसे होगा , जानकर जो
अनजान बने परिचय कैसे
पूर्ण होगा ?
जगाये हम उसको जो
गहरी नींद में अपलक शांत
चुप सो रहा , पर जगाये कैसे
उसको जो मात्र अभिनय कर
स्व - पर को छल रहा ?
कैसे देखेंगे इस पल्लव प्रात को
चहकते विहगं गाते भ्रमर कमलिनी
पात पर , झरनों का निर्झर झरित
स्वर , बाँसुरी - वीणा - सितार संग
इकतारा की मृदुल झंकार देती
वनदेवी आश्रय अवलम्बन
करुणा भक्ति दया सौहार्द का
कोई नन्हा बीज अंकुर होकर
जीवंत देता प्रमाण अपना
रहे रहकर , अगर पड़े गले जो
काल आकर , रोया क्या ?
दिया दान ही दधीचि सा
जब तक बंद रहेंगे ,
तब तक बंदी रहेंगे ,
विस्तार दे दो , अपने भीतर
की ये बंद खिड़की खोल दो ...!
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