सच्चे मन से
यहीं समय है , सही समय है
जो गुजर गया , वो बीता कल था
जो अभी प्रकट नहीं है , उसकी चिंता ,
उसका संवरण करना व्यर्थ है ,
दुश्चिंताओं की ज्वालाओं में जल ईर्ष्या
की अग्नि जलाना और भी दाहक है ,
सफलताओं की चाह में ,
असफलता की सीख को भूलाना
अहो ! बड़ा दुर्भाग्य है ,
लापरवाह बन लू लपट में
निरुद्देश्य घूमना जीवन शून्य की पूर्ण
परिधि से खुद को बाहर धकेलना पाप है ,
अहो ! महापाप है व्यर्थ दोषारोपण
स्व भाग्य निर्माता तुम हो
निज गौरव के विधाता भी तुम हो
कुरुपता में विष्षण सौंदर्य जनक तुम
सृजन के उपासक कला - कौशल
विघा से प्राणानुप्राण मानव तुम हो
हताशा में जा खुद को ना खोना
क्षमता को पहचान अपनी ,
नव - निर्माण की नव सोच नव सृजन
से ना कभी पीछे हटना ,
अहो ! ध्यान रहे मगर अपनी मर्यादा का
अपनी सीमा का कर अतिक्रमण
रावण कभी ना बनना ,
मत छू पावें अहंकार कभी सिर
सत् असत् ज्ञानी विवेक ज्ञान रखना
धैर्य से विचलित पापकर्म में ना पड़ना
निज लाभ में आ किसी दूजे को ना छलना
जीवदया करुणा प्रेम साहस धैर्य और
ईश्वर प्राणीधान है , मूलमंत्र है
जीवन स्वर्ण के आकर
मानवता का दीप तुम ,
तुम्ही दीये की बाती घी और लौ
तुम आह्वान करो सच्चे मन से उस ईश्वर का
जिसने बनाया हमें तुम्हें और इस
समस्त सृष्टि को , पुकार लगाओ जोरों की
वे आवें करुणानिधान , और देवें
इस मानव हृदय की ज्योति बार !
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