झरोखा

झरोखा   जीवन   का   यादों   का   बातों   का

बीते   वक्त   के   तरानों   का

आँखें    मूँदें   इस    वक्त   को   भूल  

किसी   और    ही   समय   की  दुनिया  में   जाने  का ।

नीम -  चमेली   की   हौंली - हौंली - सी   महक ,

वो   गेरू  -  गोबर   से   लिपा   मिट्टी   का   कच्चा  आँगन, 

दीयों   की   अवली   से   सजा ।

पकड़िया   के   छोटे   कुन्द   दाने ,

नीम   की   कैसेली   निंबौरी   और 

फूलों   का   मधुर   पराग ।

नारंगी   का   खट्टा -  मीट्टा    स्वाद ,

सुख  -  दुख   का  अपना  राग ।

गाये   खग   कलरव   की   मीठी   बोली 

नदियों   की   रुनझुन   और   खेतों   में   बजती

बैलों   की    घण्टी ।

गोधूलि   की    अल्हड़    बेला    

लौटती   फिर   अपने   बसेरे    

पक्षी   को   पुकारता   उसका   नीड़   और 

बंसी    बजती   दूर   सलोने   की 

ढोल   के   थापे   पड़ते   फिर   दूर   किसी   घर  में ।

शाम   की   संध्या   दीप   जलाये ,

डूबता   लाल   अरुण   अब   अपनी   लाली   छुपाये ।

दिन   की   ऊर्जा   का   जाना 

रात    की    अलसायी   आँखों   का   आना । 

पलकों   तले   बीते -  आते   कल   के  सपने   सजे ।

आज  -  कल   की    बातें

दिन -  रात   का   आना -  जाना ।

झरोखा   जीवन   का   यादों   का   बातों   का  

बीते   वक्त   के  तरानों   का 

आँखें   मूँदें   किसी   और   ही   समय   की   दुनिया   में

जाने  का । 

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