तमाशा

अम्बर सा रंग , धरती मेरी धानी 

सागर का बहता पानी , 

देती मोती सपनों को आकार

कोरे मन की ये कोरी सी कहानी

कहता क्या रंग , कहता है क्या पानी

उड़ने की जो दिल - ए - तमन्ना   

ये मन ने है ठानी 

गाये अरमान बनके दुनिया की

एक नई पहचान

छाये रिलमिल - झिलमिल  

सितारे सजके मनाये अपने आसमाँ को ,

अंधेरों की छाया रोशन कर खिल 

जाए झूमा - झूमा सा चंदा बताशा

ऊँची लहरों से उठता दुनिया का आज

कोई एक नया तमाशा ।


टिप्पणियाँ

  1. आपकी ये कविता पढ़कर लगा जैसे आसमान, धरती और सागर सब मिलकर एक नया सपना बुन रहे हों। सच कहूँ तो मुझे इसमें सबसे ज़्यादा उड़ान और उम्मीद का एहसास मिला। आपने शब्दों में जो रंग और रोशनी भर दी है, वो पढ़ते ही आँखों के सामने कोई ख़ूबसूरत चित्र सा बन जाता है।

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