मेरा गीत
मेरा गीत गाँवों में बसता है ।
सुनना है , तो सुनो ....!
वो धूप के धान
की छेनछबीली ऊँची - ऊँची
आसमानों को छूती - सी
नजर मिलाती कनखी - बालियाँ ।
आमों से महकती भरीपूरी डालियाँ ।
बरगद की जड़ों में झूला झूलता बचपन ,
उसके नीचे चौपाल सजती उम्र ज्यादा की पचपन ।
मैदानों में लगे चौंके - छक्के ,
पिट्टू , पकड़म - पकड़ाई , और कंचें के मनके ।
खुले आसमान की खुली पाठशाला ।
घंटी बजी और लगा पुस्तिका पर ताला ।
न कोई जूतम - पेजार
रेला बढ़ चला अपनी रफ्तार।
टीले - टीले घूमेगी टोली ,
मस्ती को बना अपनी हमजोली ।
रस्सा - कस्सी अपने से
खोज निकालना आँखों में पलते
उस अजब अचंभे को
धाती न छूती आसमान की ,
वो सागर की थाह में छिपे सच्चे मोती
सुरागसी करती बर्फ ढ़की ऊँची चोटी ।
नीचे मैदानों में
पावों तले बजता सूखे पत्तों का संगीत ,
ऊपर हवाओं में डोलता
पत्रों की हरित बंसी का गीत ।
जमुना में बहती जाती अपनी मंजिल को
मेरी कागज की कश्ती ।
डगमग सँभलती बढ़ती चुस्ती में ,
अनजान विवर को भी अनजाने अपनी मस्ती में ।
राहों की परवाह से बेफिक्र
आसमान में उड़ती वो पीले फीते की पतंग ।
सतरंगी इंद्रधनुषी संसार
रहा न इसमें कुछ निस्सार ।
मेरा गीत बना मेरा जीवन सार ।
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