शरद की दोपहरी

दोपहरी   की   गुनगुनी   धूप ,  

शरद  को   थोड़ा   उष्म  करें  ,

 पेडों   के   नीचे    बालदल  खेले  ।

अंगड़ाइयों   में   कहीं  उन्नींदी  सांसें  , 

झपकियों   के    आँचल  तले   छिप  जाए  ,

स्वप्न   पट्ट   पर   कोई  ,

अतीत   की   स्मृतियों   के  चित्र  बिखेरे  ,

कोई   भविष्य   की  अनदेखी -  अनसुनी 

अनकही - अनजान  - सी   राहें   टटोलें , 

कोई   वर्तमान   की    कर   साझेदारी  ,  

श्वास -  माला  थामे   जाप    करें ।

दोपहरी    की    गुनगुनी    धूप  , 

शरद    को     थोड़ा    उष्म    करें ,

पेड़ों   के   नीचे   बालदल   खेले ।


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