प्रभातगीत

पंक्षियों  ने   छेड़ी   तान  सुरीली  

लहराया  धरा   का   आँचल   कि , 

गुनगुनाया   मन   रे ,  हाँ   गुनगुनाया   मन  रे 

गुनगुनाया  मन  रे ,  गुनगुनाया  मन  रे

अंग  में  उमंग   भरे  ,  मस्ती  का  रंग  भरे 

बाजे   ढोल - मृदंग   संग

वेणु -  वीणा  का  स्वर  कि , 

गुनगुनाया   मन   रे ,  हाँ  गुनगुनाया  मन  रे

गुनगुनाया   मन   रे  ,  गुनगुनाया  मन  रे

खेतों  की   मेढों   पे  ,  लौटा  है   जीवन 

बनके  ज्यों  आई  मीठी -  मीठी -  सी   पूर्वयाँ

सपनों   की   झिलमिल  - सी   छइयाँ 

फूलों   पे   लुढ़की   ज्यों  ओस  बूँद   की

रेला   रेला   चला  फिर  देखो  अपनी  ही  खोज  में

अजनबी   राहों   पे  डाल  अपना  ही  रंग 

चल   पड़े   कदम   कि  ,

गुनगुनाया  मन  रे ,   हाँ  गुनागुनाया  मन  रे

 गुनगुनाया  मन  रे ,  गुनगुनाया  मन  रे 

 लुकाछुपी    हुई     अब    बंद ,

 खोल  किवड़िया   छुपा  तू   किधर  

 ममता   के  सागर  से  भरा   धरा   का  आँचल   इधर 

 कि  ,  गुनगुनाया  मन  रे ,  हाँ   गुनगुनाया  मन  रे 

 गुनगुनाया  मन  रे ,  गुनगुनाया  मन  रे .....!

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