बस यूँही
दिन खुशहाल है । हर उम्मीद खुशी पर टिकती है । स्वप्न भी अपने अनरुप गढ़े जाते है । वास्तविकता से दूर या उसका मिलाजुला रुप या किसी अन्य दृष्टि से संसार को देखने की चेष्टा या उससे दूर जाना । यथार्थ को खिंचना , या जो घटित हो रहा है या जो शंकित घटना मन को उद्वेलित कर आंदोलित करती है , उससे भागना या पलायन या वास्तविक को ना देख पाना ; खरबूजा हमारे समाने धरा है और खरबूजा हमारे सामने नहीं धरा है , ये कैसी बात ?व्यर्थ का वाक्य है क्या कहना इस पर , जो दृष्टिक्षेत्र में , वह निकट प्रत्यक्ष हमारे है , पर क्या सबकुछ ; क्या ? शब्द ही बड़ा उद्वेलित करता है ।जिज्ञासा जगाने की उत्कट अभिलाषा आतुरता इसमें छिपी है । सिक्ताकण से तेल निकलना ? व्यर्थ का प्रयत्न ; पर क्या ; ऐसा सत्य नहीं हो सकता ? होते है , पर बेफिजूल बातें , मन को शून्य पर भी छोड़ दो । हरेक बिंदु पर उलझनों को ओर अधिक उलझाया जाए , ये तो सही नहीं है । किहीं हल नहीं , तो चुप रहो शांत हो जाओ , अशांति और क्या माँगती है - शांति । लयबद्ध एकाकार साधन की खोज में फिरने से अच्छा , एक बार खँगाल ले ढंग से , व्यर्थ की खोजबीन से बच जायेंगे , जो चीज निकट में है उसको खोजना इधर - उधर भटकना बेकार हीं तो है , और फंस भी गए तो कोई बुरी बात नहीं , क्या दुबारा हम उसे खोज नहीं पायेंगे , ऐसा तो कोई नियम नहीं । नन्हा पौधा अंकुरण की लय पा दृढ़ - परिस्थितयों में भी पूर्ण वृक्ष बन हीं जाता है । बस यूँही आगे फिर किभी ...
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बस यूँ ही ... स्वयं से बातें करते हुए हर परिस्थिति में सकारात्मक रहने का प्रयास जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
जवाब देंहटाएंसादर।
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आत्ममंथन की प्रक्रिया चलती रहे..।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २५ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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