शिवसंकल्पसूक्त
शुक्ल यजुर्वेद के 34वें अध्याय में शिवसंकल्पसूक्त प्राप्त होता है। इस मंत्र के दृष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य और देवता मन है। शिवसंकल्पसूक्त की प्रेरणा मन को एकाग्रचित्त, संयमी और शुभसंकल्पों से युक्त बनाने की है। मन मानव के कर्मों का प्रेरक है। वहीं हमारे उन्नति और अवन्नति का कारण बनता है। हमारा मन ही समग्र ज्ञान का स्रोत होता है। अतः इस अत्यंत तेज़वान और गतिशील मन को सम्यक गति से गम्य बनाए रखने के लिए उत्तम संकल्पों वाला होना अपरिहार्य रूप से आवश्यक है।