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रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ बनाम गुलाब निबंध

रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ बनाम गुलाब निबंध गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्‍त होता है। गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्‍या चाहते हैं - पुष्‍ट शरीर या तृप्‍त मानस? या पुष्‍ट शरीर पर तृप्‍त मानस? जब मानव पृथ्‍वी पर आया, भूख लेकर। क्षुधा, क्षुधा, पिपासा, पिपासा। क्‍या खाए, क्‍या पिए? माँ के स्‍तनों को निचोड़ा, वृक्षों को झकझोरा, कीट-पतंग, पशु-पक्षी - कुछ न छुट पाए उससे !

तमाशा

अम्बर सा रंग , धरती मेरी धानी  सागर का बहता पानी ,  देती मोती सपनों को आकार कोरे मन की ये कोरी सी कहानी कहता क्या रंग , कहता है क्या पानी उड़ने की जो दिल - ए - तमन्ना    ये मन ने है ठानी