महादेवी वर्मा : यह मंदिर का दीप ( गीत )
यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो रजत खंड - घड़ियाल स्वर्ण वंशी - वीणा - स्वर , गये आरती बेला को शत - शत लय से भर , जब था कल - कंठों का मेला , विहँसे उपल तिमिर था खेला , अब मंदिर में इष्ट अकेला , इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो ।