संदेश

नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महादेवी वर्मा : यह मंदिर का दीप ( गीत )

  यह  मंदिर  का  दीप  इसे  नीरव  जलने  दो  रजत  खंड -  घड़ियाल  स्वर्ण  वंशी - वीणा - स्वर , गये  आरती  बेला  को  शत - शत  लय  से  भर ,  जब  था  कल - कंठों  का  मेला , विहँसे  उपल  तिमिर  था  खेला , अब  मंदिर  में  इष्ट  अकेला ,  इसे  अजिर  का  शून्य  गलाने  को  गलने  दो ।

सरस्वती वन्दन : वन्दिता भगवती शारदे

  वन्दिता भगवती शारदे    माँ ! बुध्द दे , स्वर शुध्द दे ! वाणी मधुर हो , आखर बने अरथमय ज्ञान और भक्ति की ज्योत जगे  वन्दिता भगवती शारदे   माँ ! बुध्द दे , स्वर शुध्द दे !

गिल्लू - रेखाचित्र महादेवी वर्मा कृत

सोनजुही  में  आज  एक  पीली  कली  लगी  है । उसे  देखकर  अनायास  ही  उस  छोटे  जीव  का  स्मरण  हो  आया , जो  इस  लता  की  सघन  हरीतिमा  में  बैठता  था  और  फिर  मेरे  निकट  पहुँचते  ही  कन्धे  पर   कूदकर  मुझे  चौंका  देता था । तब  कली  की  खोज  रहती  थी , पर  आज  उस  लघुप्राणी  की  खोज  है । परंतु  वह  तो  इस  सोनजुही  की  जड़  में  मिट्टी  होकर  मिल  गया  होगा  कौन  जाने  स्वर्णिम  कली  के  बहाने  वहीं  मुझे  चौंकाने  ऊपर  आ  गया  हो ।

तैयारी

  आप  अपने  कार्यक्षेत्र  में  सफलता  प्राप्त  करना  चाहते  है  तो  इसके  लिए  तैयारी  करे । आप  अपने  लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  के  लिए  जो  कुछ  भी  करते  है , वह  पूरी  निष्ठा  के  साथ  करे । तैयारी  अगर  अच्छी  होगी  तो  जीत  का  फल  भी  निश्चित  ही  मीठा  होगा । 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का निबंध - भाव या मनोविकार

  अनुभूति  के  द्वंद्व  से  ही  प्राणी  के  जीवन  का  आरंभ होता  है । उच्च  प्राणी  मनुष्य  भी  केवल  एक  जोड़ी  अनुभूति  ही  लेकर  इस  संसार  में  आता  है ।  बच्चे  के  छोटे  से  हृदय  में  पहले  सुख  और  दुख  की  समान  अनुभूति  भरने  के  लिए  ही  जगह  होती  है । पेट  का  भरा  या  खाली  रहना  ही  ऐसी  अनुभूति  के  लिए  पर्याप्त  रहता  है । जीवन  के  आरंभ  में  इन्हीं  दोनों  के  चिन्ह  हँसना  और  रोना  देखे  जाते  है  पर  ये  अनुभूतियाँ  बिल्कुल  समान  रुप  में  रहती  है , विशेष  - विशेष  विषयों  की  ओर  विशेष  - विशेष  रुपों  में  ज्ञानपूर्वक ...

गति से प्रगति की ओर

  जीवन  में  अगर  हम  किसी  लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  में  दो  कदम  की  दूरी  से  चूक  जाते  है  तो  इसका  मतलब  ये  नहीं  है  कि  हम  हार  गये  है ,  हम  पिछड़  गये  है  और इससे  हम  अपने  प्रतिद्वंद्वी  के  प्रति  ईर्ष्या  का  भाव  मन  में  स्थापित  कर  ले  और  इसी  निराशा  भरे  भाव  को  लिए  बैठे रहे   और  अपनी  गति  को  इसी  निराशा  की  भेंट  चढ़ाकर अपनी  मानसिक  स्थिति  को  भी  अस्वस्थ्यकर  बना  ले । बल्कि  हमें  यह  सोचना  चाहिए  कि  यदि  हम  दो  कदम  से रह  गए  ,  तो  हम  उसे  अपने  अगले  प्रयास  में  दूर  करते  हुए...

अजन्ता - भगवतशरण उपाध्याय रचित निबन्ध

जिन्दगी  को  मौत  के  पंजों  से  मुक्त  कर  उसे  अमर  बनाने  के  लिए  आदमी  ने  पहाड़  काटा  है । किस  तरह  इंसान  की खूबियों  की  कहानी  सदियों  बाद  आने  वाली  पीढ़ी  तक  पहुँचायी  जाये , इसके  लिए  आदमी  ने  कितने  ही  उपाय  सोचे  और  किये । उसने  चट्टानों  पर  अपने  संदेश  खोदे , ताड़ों  से  ऊँचे  धातुओं  से  चिकने पत्थर  के  खम्भे  खड़े  किये , ताँबे  और  पीतल  के  पत्थरों  पर  अक्षरों  के  मोती  बिखेरे  और  उसके  जीवन - मरण  की  कहानी  सदियों  के  उतारों  पर  सरकती  चली आयी , चली  आ  रही  है , जो  आज  हमारी  अमानत - विरासत  बन  गयी  है ।       इन्हीं  उपायों...

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का निबंध - क्या लिखूँ

मुझे  आज  लिखना  ही  पड़ेगा  ।    अंग्रेजी  के  प्रसिद्घ  निबंध  लेखक  ए० जी० गार्डिनर  का  कथन  है  कि  लिखने  की  एक  विशेष  मानसिक  स्थिति  होती  है । उस  समय  मन में  ऐसी  उमंग - सी  उठती  है , हृदय  में  कुछ  ऐसी  स्फूर्ति  सी  आती  है , मस्तिष्क  में  कुछ  ऐसा  आवेग  सा  उत्पन्न  होता  है  कि  लेख  लिखना  ही  पड़ता  है । उस  समय  विषय  की  चिन्ता  नहीं  रहती ।  कोई  भी  विषय  हो , उसमें  हम  अपने  हृदय  के  आवेग  को  भर  ही  देते  है । हैट  टाँगने  के  लिए  कोई  भी  खूटी  काम  दे  सकती  है । उसी  तरह  अपने  मनोभावों  को  व्यक्त  करने  के  लिए...

ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से - रामधारीसिंह दिनकर का निबंध

  मेरे   घर   के   दाहिने   एक   वकील   रहते   है , जो   खाने - पीने   में   अच्छे   है , दोस्तों   को   भी   खूब   खिलाते  है  और   सभा - सोसाइटियों   में   भी   काफी   भाग   लेते   है । बाल - बच्चों   से    भरापूरा   परिवार ,  नौकर   भी   सुख   देनेवाले   और   पत्नी   भी   अत्यन्त   मृदुभाषिणी । एक   सुखी   मनुष्य   को   और   क्या   चाहिए ?                मगर   वे   सुखी   नहीं   है । उनके   भीतर   कौन - सा   दाह   है , इसे   मैं   भली - भाँति...