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स्नेह ममता का

प्रातः   की   धूप   लगती   है  प्यारी  वो   माँ   बन  लुटाने   जो  आ   जाती  है इस   जग   पर   अपनी   ममता   सारी आँचल  में   भर   लेती   है  अपने  प्यारों  को

शर्बत

गर्मियों       का     मौसम    जब    तपता चौराहों   पर   ,   गलियों    में गन्ने    का    ठंडा    मीठा    रस    तब    बिकता खट्टा    नींबू     मौसमी    शर्बत     कच्ची    केरी     जलजीरा     पुदीना    और    शर्बत  - ए -  खसखस

ममता - जयशंकर प्रसाद की कहानी

रोहतास     दुर्ग     के     प्रकोष्ठ    में   बैठी     हुई    ममता   ,   शोण    के   तीक्ष्ण     गम्भीर     प्रवाह   को    देख    रही    है ।  ममता    विधवा    थी ।  उसका    यौवन     शोण    के    समान   ही    उमड़    रहा    था ।   मन    में   वेदना ,   मस्तक   में   आँधी  ,   आँखों    में    पानी     की     बरसात   लिये  ,    वह    सुख     के    कंटक  -   शयन     में     विकल     थी । 

मोहन मुरलिया बंसी बजाए

मोहन  मुरलिया  बंसी  बजाए।  जागी  जागी   जागी  जाए  जग  की  कलियाँ मोहन  मुरलिया  बंसी  बजाए।  बजाए  मोहन  मुरलिया  बंसी  बजाए  जागी जागी  जागी   जाए  जग  की  कलियाँ  मोहन   मुरलिया  बंसी  बजाए। 

देखो बंसत बहार आई

देखो   बंसत   बहार   आई   और   संग     पतझड़    की   बात   आई  सहजन    की    डाली    पे   फिर फूली    फूलों    की    बहार    आई  पतझड़    के    जीर्ण    होते    पीले पत्तों    की    गहन    होती    उच्छवासों   में

शिवशक्ति

नभ   के    सितारे    आज   आँखों   के    मोती    बन    रीत   गए । स्वप्न   की   आकाशगंगा   पार   न पा   सकी  । विवर्त    की    हलचल   में   सहसा    उत्थित   गर्व    माटी    बन    माटी   का   हो   गया , आशा   की   किरण   ने   फेरी   जो   रोशनी  एक   नई  ,   मेरा   अंत    मेरे   नवजीवन का    नवगीत    हो   गया । वास्तव   की    यथार्थ    भूमि   पर अशुभ  क्षणिकाएँ   काली  घटा  बन  छाई  थी  अभिमान   का   विध्वंसक   स्वरुप  गहन    मोह    बन    क...

हल्दीघाटी - श्यामनारायण पाण्डेय कृत

मेवाड़ -  केसरी   देख  रहा , केवल   रण  का  न  तमाशा  था । वह   दौड़ -  दौड़   करता  था  रण , वह   मान -  रक्त  का  प्यासा   था। चढ़कर   चेतक  पर   घूम  -  घूम  , करता   सेना   रखवाली  था ।