शिवशक्ति
नभ के सितारे आज आँखों
के मोती बन रीत गए ।
स्वप्न की आकाशगंगा पार न
पा सकी ।
विवर्त की हलचल में
सहसा उत्थित गर्व
माटी बन माटी का हो गया ,
आशा की किरण ने फेरी जो रोशनी
एक नई , मेरा अंत मेरे नवजीवन
का नवगीत हो गया ।
वास्तव की यथार्थ भूमि पर
अशुभ क्षणिकाएँ काली घटा बन छाई थी
अभिमान का विध्वंसक स्वरुप
गहन मोह बन कालातुर तत्पर था
ज्यों अंधकार को गहन करने में ।
चेतना शक्ति का दीप जला ,
निस्तेज होते तेज को ज्यों
फिर तेज मिला ।
शुचिता संपन्न अग्नि को फिर
अपना खोया स्वरुप मिला ।
अनन्त ब्राह्माण्ड के कर दर्शन
रिक्त मन घट अब
भाव धरा को पा स्थापित था ।
स्नेह , करुणा की सुमुधर धारा से
बंजर अब प्लावित था ।
स्नेह ममत्व पुलकित जग
धरा की अमरबेल
क्षीण होते तत्व को नया आकार मिला ।
बिखरते मुक्ता को पिरो
माला का उपहार मिला ।
शुष्क रेत कंटककीर्ण पथ
नेह बंध डोर जीवन मन प्यास
द्वार किनारे सरसिज का बांध
आकुल रक्त वर्ण विवर्ण होते
धुँधलक नेत्रों को शीतलता
की बायर का नम व्यवहार मिला ।
शांत मन को फिर जीवनज्योति
का आलोक प्रसार मिला ।
व्यग्रता के उथल - पुथल अशांत
होते विकराल चक्रवात को
अपना मलय समीर सुभाव मिला ।
शक्ति की विकृत होती करुण
व्यथा बढ़ते कोप अनिष्ट को
संसार में शिवशक्ति का कल्याण मिला ।
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