संदेश

अप्रैल, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनेकों शुभकामनाएँ वेणु

वेणु अपनी गति की चाल तेज कर पूरे दमखम के साथ रोड़ के किनारे किनारे चली जा रही है । हम्म…काफी देर जो हो गई है । पहले दिन ही लेट कैसे चलेगा ….सोचती हुई अपने पैरों से रास्ते को और जल्दी जल्दी नापने लग जाती है । जैसे कि उसे किसी मैराथन में दौड़ लगानी है , क्या लगा रही है , हालाकि इस रास्ते का भी उसे लिहाज रखना है अतः अब जैसे भी हो किसी तरह समय पर पहुँचना है । ये लो संगीत नाट्य कला अकादमी का केंद्र नजर आ गया और जिसे देख वेणु को कुछ

माता के आँचल के बिखरे मोती

तेज   हवाएँ    लू   लपट   सूखे    मैदानों    में हाहाकार    प्रचण्डिका   अग्निधार     बाण उफनती    चिंगारियाँ     लौहवर्ण     सावधान  मनसा   सावधान  !   थोड़ा   सोच-विचारकर   काम   करो    जहाँ   भी    जैसे   भी    संभव  हो   सके   अपनी  धरतीमाता   की   पुकार  सुनो   बनके    जो    चारों    दिशाओं   में    गूँज    रही मजदूरों    कामगरों    बेबस   बेजुबानों   की   आह 

अभी बाकी है - एक आस एक विश्वास

अन्तश्चेतना  का   दीप   जला  है  मनमानव   ईश्वरत्व   के   आह्वान   में   विश्वास   का    दृढ़   आधार   छिपा  है  लगा   रही   है    खुली   घाटी    में    एक  मौन    विनम्र    पुकार  ,   साहस   धैर्य   बिंदु प्रकृति    माता    ने    सिखलाया  ; वह   खड़ा   है    दिशाविहीन   नहीं   जो पथविहीन     नहीं     हाँ  ,   मगर अभी    उसका   जागना   बाकी   है

चिंता नहीं चिंतन करो

चिंतन समाधान प्रस्तुत करता है । जो जीवन के हर मोड़ हर परिस्थिति में समस्याओं से कैसे निपटा जाए ? कैसे हम स्वयं को भीतर से सशक्त करे ? कैसे हम अपने जीवन को सार्थक कर सकते है ? कैसे स्वयं और दूसरों के मध्य सामंजस्य सुनिश्चित कर सकते है ? इत्यादि तमाम प्रश्नों का उत्तर है - चिंतन । चिंतन यानी किसी चीज को गहराई से समझना उसके हरेक पहलू पर व्यापक दृष्टिकोण के साथ विचार करना और यह तय करना कि यदि हम ऐसा ना करके कुछ ऐसा करे की जो प्रतिकूल परिस्थितयाँ हमारे समक्ष आयी है , क्यों ना उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करे , क्यों ना उसमें कुछ रचनात्मक खोज निकाले और क्यों न धैर्य से काम लेते हुए स्वयं को भीतर से दृढ़ बनाया जाए ।

ये नन्हीं बाल आशायें पूर्ण होंगी

पूर्णिमा    चाँद   आज   आसमाँ   पर   सजेगा  ,   धीरे  -   धीरे   बढ़कर  कई   दिनों   के   इंतजार   के   बाद  आज   चाँद   अपने   पूरे   रुप   में   फबेगा गायेंगी    गीत    मीठी   आवाजों   में   सितारों    की   महफिल   से   पूरा   समा   जब   बंधेगा माँ  अपने  बच्चे   को   लोरी   गाकर  सुलायेगी खिड़की   से   चंदा   के   दर्शन   करायेगी

उसी का ये गायन है

गीत   गा   रहा   मौसम     जीवन   में    उज्ज्वला   का   प्रकाश   पसर   रहा  है  हर    गीत    एक    गहन   को   कह   रहा   है  ,    किसी की    बात    सुनाता  ,   किसी   को    पुकार   लगाता  दिनभर   यह   गीत   मंद   स्वर   में    मधुर  तान   संग    कानों    में    गूँजता   रहता   है  ;    कुछ    कहने   को किसी    का    संदेशा    सुनाने    को     शिद्दत   के   साथ

अकेले ये दोनों पीढ़ियाँ

दो   पीढ़ियों   का  अन्तराल   है   ये विडम्बना   की    आवाज   देता    एक  तरह  से  अन्तर्मन  को  चीरता असह्य  पीड़ादायक   दर्द   है , ये   दो   पीढ़ियाँ   विवश   है   रह   रहकर   यह   दंश   सीने  पे  झेलती  है इन्होंने   शायद  खुद  सीमा  तय   कर   ली  है ये   दोनों    पीढ़ियाँ   एक   दूसरे   से    दो    हाथ   फासले   पर    खड़ी   है

सहज स्वीकार्य जीवन उत्कट स्वाभिमान

भरी   दोपहरी  मन  की  संवेदना  ठंडी   हो   जाती  है चिलचिलाती   धूप  में  अक्सर   लोगों  का कर्त्तव्य  ही   उन्हें   जिला   लेता  है  दुर्धुर्ष  रुप  है  ,   पर   अपने   में    स्वाभिमानी  , उत्कट   जीवंत   स्वीकार्य   है   उसे परिस्थिति  की  संपन्नता विपन्नता  से कभी  विचलित नहीं  हुआ  सहज   मुस्कान  सहज  आँसू   ,   यहीं   उसकी  परिभाषा वह   बन्धन   में    भी    निर्बंध    कमलवत   है

कला : एक अंतस उद्भावना

कला देखते ही बनता है इनका जादू । अपने में कितना कुछ समेटे रहती है । एक तरफ ये हमारी विरासत अमानत धरोहर है , तो दूसरी तरफ मानव मन की रचनार्धिमता व उसके रचनाशील प्रधान गुण की सर्जना है । अतीव भावों को ग्रहण कर , एक के लिए क्रमशः अलग - अलग भाव , तो नजरिया भी अलग - अलग नेत्रों को अभिरामता आश्चर्य का सुख ही नहीं मिलता इन्हें देखकर बल्कि एक उद्भावना मन को गहरे उतरती है।

ये चुनौतियाँ ये मुश्किलें

चलते   चलते    राहों    में   मुश्किलें   हमसफर   बन    जाती   है मंजिल   से    कई    ज्यादा    ये    चुनौतियाँ    दिल   को   भाती  है  यही     तो    सिखाती    है गिरकर   सँभलना   ,   विश्वास   के   साथ  फिर   आगे   बढ़ना  ,   औरों   पर   तो हर   कोई   ठठा   मार   हँस   लेता   है  , खुद  पर  हँसना  यही  पथ  हमें  सिखलाता  है ,

एक स्त्री एक पुरुष

एक   स्त्री   माँ   है ,   एक   पुरुष   पिता   है , एक   स्त्री    बहू    है ,   एक   पुरुष   दामाद  है , एक    स्त्री   बुआ   है ,  एक   पुरुष   फूफा  है ,  एक   स्त्री   भाभी  है ,  एक   पुरुष   भैया   है , एक    स्त्री    मामी   है ,  एक   पुरुष  मामा  है ,

हर एक स्त्री सीता सी

धैर्य   धरा   धरणी   धरा धैर्य    धरा    धरणी   सुता धैर्य   ध्यान   ईश्वर   का नमन    आत्मरुप    का होती    यात्रा    प्रारंभ    जहाँ   से विराटस्वरुप     की    , विनयपथ    अचल    अटल श्रध्दा   विश्वास    तन्मय    लगन   भक्ति   की चिर    समर्पण   ,  भूल   गए   पथ  फूलों  का भूल   गए   पथ   शूलों    का 

कल प्रात होगी अवश्य ही प्रात होगी

परम   लक्ष्य   जा   दूर   गिरा    पथ   विचलित   शूल   से   लहू    बहा    भटकते   अंधकार   में    अंध   हो   गई  नयनदृष्टि     व्याकुल    आतुरता     उत्कंठा मन    में      आसीन     अधीरे   क्षोभ    गंभीर    भरा उच्छृंखलता     का     परिणाम स्वच्छेचार   गति    बह   चली   भयंकर

सच्चे मन से

यहीं   समय   है  ,  सही   समय  है जो   गुजर    गया  ,  वो   बीता   कल   था जो    अभी    प्रकट    नहीं   है ,   उसकी  चिंता ,   उसका   संवरण   करना    व्यर्थ   है , दुश्चिंताओं    की    ज्वालाओं   में   जल   ईर्ष्या की    अग्नि     जलाना    और   भी   दाहक   है , सफलताओं    की     चाह     में  , असफलता     की     सीख    को    भूलाना

हे सूर्य !

प्रात   किरणों   ने   किया   सवेरा उषा   भर   लायी   सुबहा   की   लाली भोर    भई     पनघट    पर   गंगा   जमुना   सरयू   गोदावरी   कृष्णा    कावेरी    शिप्रा    नर्मदा सरस्वती    ब्रह्मपुत्र    सिंधु    अगणित मनघाटों    पर     करते    नमस्कार 

मेरे राम मेरे साथ प्रतिपल चलते है

कण    कण    में    बसते   है  । हर    क्षण      में     रहते     है । मेरे    राम    मेरे    साथ    प्रतिपल   चलते   है । बनके     नैया    के     खैवणहार मेरी     नैया     पार     लगाते    है  । अंधेरे     में     करते    उजियारा     राह     दिखाते    है  । मुश्किलों    में    साथ   निभाते   है ।