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चिंता नहीं चिंतन करो

चिंतन समाधान प्रस्तुत करता है । जो जीवन के हर मोड़ हर परिस्थिति में समस्याओं से कैसे निपटा जाए ? कैसे हम स्वयं को भीतर से सशक्त करे ? कैसे हम अपने जीवन को सार्थक कर सकते है ? कैसे स्वयं और दूसरों के मध्य सामंजस्य सुनिश्चित कर सकते है ? इत्यादि तमाम प्रश्नों का उत्तर है - चिंतन । चिंतन यानी किसी चीज को गहराई से समझना उसके हरेक पहलू पर व्यापक दृष्टिकोण के साथ विचार करना और यह तय करना कि यदि हम ऐसा ना करके कुछ ऐसा करे की जो प्रतिकूल परिस्थितयाँ हमारे समक्ष आयी है , क्यों ना उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करे , क्यों ना उसमें कुछ रचनात्मक खोज निकाले और क्यों न धैर्य से काम लेते हुए स्वयं को भीतर से दृढ़ बनाया जाए ।

कला : एक अंतस उद्भावना

कला देखते ही बनता है इनका जादू । अपने में कितना कुछ समेटे रहती है । एक तरफ ये हमारी विरासत अमानत धरोहर है , तो दूसरी तरफ मानव मन की रचनार्धिमता व उसके रचनाशील प्रधान गुण की सर्जना है । अतीव भावों को ग्रहण कर , एक के लिए क्रमशः अलग - अलग भाव , तो नजरिया भी अलग - अलग नेत्रों को अभिरामता आश्चर्य का सुख ही नहीं मिलता इन्हें देखकर बल्कि एक उद्भावना मन को गहरे उतरती है।

सुविचार

●  एक    समय    में    एक   काम   करो  ,   और   ऐसा   करते  समय    अपनी    पूरी   आत्मा   उस   काम   में   डाल   दो । ●  ब्रह्माण्ड   की   सारी   शक्तियाँ   पहले   से   हमारी   है ।  वो  हम   हीं   है ,  जो   अपनी   आँखों   पर   हाथ   रख  लेते  है  और   फिर   रोते   है   कि   कितना   अंधकार   है।

तैयारी

  आप  अपने  कार्यक्षेत्र  में  सफलता  प्राप्त  करना  चाहते  है  तो  इसके  लिए  तैयारी  करे । आप  अपने  लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  के  लिए  जो  कुछ  भी  करते  है , वह  पूरी  निष्ठा  के  साथ  करे । तैयारी  अगर  अच्छी  होगी  तो  जीत  का  फल  भी  निश्चित  ही  मीठा  होगा । 

गति से प्रगति की ओर

  जीवन  में  अगर  हम  किसी  लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  में  दो  कदम  की  दूरी  से  चूक  जाते  है  तो  इसका  मतलब  ये  नहीं  है  कि  हम  हार  गये  है ,  हम  पिछड़  गये  है  और इससे  हम  अपने  प्रतिद्वंद्वी  के  प्रति  ईर्ष्या  का  भाव  मन  में  स्थापित  कर  ले  और  इसी  निराशा  भरे  भाव  को  लिए  बैठे रहे   और  अपनी  गति  को  इसी  निराशा  की  भेंट  चढ़ाकर अपनी  मानसिक  स्थिति  को  भी  अस्वस्थ्यकर  बना  ले । बल्कि  हमें  यह  सोचना  चाहिए  कि  यदि  हम  दो  कदम  से रह  गए  ,  तो  हम  उसे  अपने  अगले  प्रयास  में  दूर  करते  हुए...

उपनिषदों में दार्शनिक विवेचन

  उपनिषद्  वेदों  की  निर्मल  ज्ञानधारा  के  रुप  में  प्रवाहित  चिंतनमयी  पृष्ठभूमि  है  ,  जो  वेदों  में  वर्णित  ज्ञानतत्व  का विशद्  व्याख्यान  हमारे  समक्ष  प्रस्तुत  करती  है ।  यह  ज्ञानतत्व  हीं  दर्शन  का  सारतत्व  है। दर्शन  अपने सत्तत्व अथवा ज्ञानतत्व  को  प्रमुख  मानता है ।

शांतिमंत्र

मन   को   नकरात्मक   विचारों   से    मुक्त   कर   सकरात्मक   ऊर्जा  का   संचार   कर    पूर्ण परमब्रह्म परमेश्वर   की    ओर   हमारा   ध्यान  एकाग्रचित्त   करने  के   लिए    यह   शांतिपाठ   अत्यन्त   सहायक  है ।  इस   मंत्र   के  उच्चारण   और  ध्यान    से    हमें    प्रतिदिन   के  कार्यों  और   चुनौतियों   का   साहसपूर्वक  सामना  करने  में  सहायता  मिलती  है  - ॐ    पूर्णमदः    पूर्णमिदं    पूर्णात्    पूर्णमुदच्यते  ।  पूर्णस्य     पूर्णमादाय    पूर्णमेवावशिष्यते  ।।

गायत्री मंत्र

ॐ    भूर्भुवः   स्वः   तत्सवितुर्वरेण्यम्  । भर्गो   देवस्य  धीमहि  धियो  यो  नः  प्रचोदयात्  ।।  अर्थ  - जो  सबका  रक्षक  है ।  समस्त  जगत  का  प्राणस्वरुप  ,  समस्त   दुःखों   को  दूर  करने  वाला  ,  सब  सुखों  का  दाता  है ।  सर्वव्यापक   और   सबको  उत्पन्न  करने  वाला  ,  पापों  का  नाश  करने  वाला  है  । उस  दिव्य  गुणों  से  युक्त  देवता  का  हम  ध्यान  करते  है ।  जो  हमारी बुध्दि  को  उचित  मार्ग  की  ओर  प्रेरित  करे  ।

शिवसंकल्पसूक्त

शुक्ल यजुर्वेद के 34वें अध्याय में शिवसंकल्पसूक्त प्राप्त होता है।  इस  मंत्र के दृष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य और  देवता मन है। शिवसंकल्पसूक्त की प्रेरणा मन को एकाग्रचित्त, संयमी और शुभसंकल्पों से युक्त बनाने की है। मन मानव के कर्मों का प्रेरक है। वहीं हमारे उन्नति और अवन्नति का कारण बनता है। हमारा मन ही समग्र ज्ञान का स्रोत होता है।  अतः इस अत्यंत तेज़वान और गतिशील मन को सम्यक गति से गम्य बनाए रखने के लिए उत्तम संकल्पों  वाला होना अपरिहार्य  रूप से आवश्यक है।  

लोक संस्कृति और लोकरंग

 लोक संस्कृति की जीवंतता का कारण उसकी सरलता, मधुरता, समाज का आपसी  सहकार का सुन्दर समन्वय और संस्कृति की जीवंतता का रंग है। यदि आज इस आधुनिक परिवेश में भी लोक संस्कृति ने अपनी सत्ता को बनाये रखा है, तो इसका कारण यह है कि उसके साथ लोक जीवन जुड़ा हुआ है। आज के इस परिवेश में लोक जीवन तेजी से बदल रहा है, पर एक स्थिरता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, अपनी कला के प्रति गहन रुचि, अपनी विरासत को विकास की ओर ले जाने की इच्छा ने इस लोक संस्कृति से जुड़े हुए इन सुन्दर रंगों को बचाकर रखा है ।

गीता का सार्वभौमिक महत्व और उसमें वर्णित गुरुपद की महत्ता

भगवद्गीता का उपदेश किसी एक विचारक या विचारकों के किसी एक वर्ग द्वारा सोची गई प्रवृत्ति या उभरती हुई किसी अधिविघक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, यह उपदेश एक ऐसी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानवता में विश्वास करती ह   गीता भगवान श्रीकृष्ण की विमलवाणी के प्रवाह में एक ऐसा उपदेश है, जिसकी सार्वभौमिकता अक्षुण्ण है और जो धर्म के सच्चे रूप में मानव धर्म को प्रतिबिम्बित करता है।