गति से प्रगति की ओर

 जीवन  में  अगर  हम  किसी  लक्ष्य  को  प्राप्त  करने  में  दो  कदम  की  दूरी  से  चूक  जाते  है  तो  इसका  मतलब  ये  नहीं  है  कि  हम  हार  गये  है ,  हम  पिछड़  गये  है  और इससे  हम  अपने  प्रतिद्वंद्वी  के  प्रति  ईर्ष्या  का  भाव  मन  में  स्थापित  कर  ले  और  इसी  निराशा  भरे  भाव  को  लिए  बैठे रहे   और  अपनी  गति  को  इसी  निराशा  की  भेंट  चढ़ाकर अपनी  मानसिक  स्थिति  को  भी  अस्वस्थ्यकर  बना  ले । बल्कि  हमें  यह  सोचना  चाहिए  कि  यदि  हम  दो  कदम  से रह  गए  ,  तो  हम  उसे  अपने  अगले  प्रयास  में  दूर  करते  हुए  एक  नया  कीर्तिमान  स्थापित  कर  देंगे । 

हमें  इस  बात पर  ध्यान  देना  चाहिए  कि  हमारी  ओर  से  क्या  कमी  रही  और  उस  कमी  को  हम  कैसे  अपने  अभ्यास , मेहनत  और  लगन  के  द्वारा  दूर  कर  सकते  है  और  फिर  इस  बात  पर  भी  गौर  करना  जरुरी  है  कि  सफलता  और  असफलता  तो  जीवन  में  लगे  ही  रहते  है ।  पर  इसमें  समझने  की  बात  यहीं  है  कि सफलता  और  असफलता  परस्पर  एक - दूसरे  के  विरोधी  न  होकर  एक  - दूसरे  के  पूरक  है ।  इसलिए  जीवन  में  सफलता  मिले  या  असफलता  उसमें  अपने  व्यवहार  को  समवेत  रुप  देते  हुए  उसे  स्वीकार  कर  अपनी  गति  को  सतत्  बनाए  रखना  होगा ।

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