दिवाली की रौनक तभी सफल बने

सर्द दिनों की रुहानी आहट

लिए मौसम का रुख बदला है

सिमटा - सिमटा दिन 

गुलाबी ठंडक लिए 

सूरज आसमाँ के पट पर

खिलने लगे गुलाब 

मंजरी पर पुलकित पुष्प

बिखरने लगी सुंगधि सुवास 

करती शीतल शरद का स्वागत 

कार्तिक की रात दीप जगमग 

विश्वास उर में भरे

आनंद के उछाह रंगोली के रंग खिले

कहा - सुनी मनभेद सब को छोड़े

शीतलता की सरलता में घुल

मुख की मुस्कान जो किसी की बने

दिवाली की रौनक तभी सफल बने


आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ  🙏

शरद पूर्णिमा का चाँद

तारों के जाल में उलझी

तितली


टिप्पणियाँ

  1. सर्द दिनों की रुहानी आहट और गुलाबी ठंड लिए शरद का स्वागत...
    वाह!!!
    सामयिक मौसम को बखूबी बयां किया आपने..
    बहुत ही सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  2. खिलने लगे गुलाब
    मंजरी पर पुलकित पुष्प
    बिखरने लगी सुंगधि सुवास
    करती शीतल शरद का स्वागत
    वाह!! प्रकृति का मनमोहक चित्रण ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर,दीप पर्व शुभ और मंगलमय हो

    जवाब देंहटाएं
  4. शरद् ऋतु का वर्णन चांदनी की उजास लिए । बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी और सुंदर रचना

    हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी और सुंदर रचना

    हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 02 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 03 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  9. सर्दी की आहत कितना कुछ में के आएगी
    सुंदर रचन

    जवाब देंहटाएं
  10. मौसम बदलने लगा है, कोहरा छाने लगा है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आप सभी सुधी पाठक जनों के सुझावों / प्रतिक्रियों का हार्दिक स्वागत व अभिनंदन है ।

Popular posts

अजन्ता - भगवतशरण उपाध्याय रचित निबन्ध

विश्रांत हो जाती

दीप - भाव

लोक संस्कृति और लोकरंग

रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ बनाम गुलाब निबंध

स्नेह ममता का

हँसो हँसो खूब हँसो लाॅफिंग बुध्दा