संदेश

रचनावली लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ममता - जयशंकर प्रसाद की कहानी

रोहतास     दुर्ग     के     प्रकोष्ठ    में   बैठी     हुई    ममता   ,   शोण    के   तीक्ष्ण     गम्भीर     प्रवाह   को    देख    रही    है ।  ममता    विधवा    थी ।  उसका    यौवन     शोण    के    समान   ही    उमड़    रहा    था ।   मन    में   वेदना ,   मस्तक   में   आँधी  ,   आँखों    में    पानी     की     बरसात   लिये  ,    वह    सुख     के    कंटक  -   शयन     में     विकल     थी । 

अशोक के फूल ( आ० हजारीप्रसाद द्विवेदी कृत निबंध )

  अशोक   के   फिर    फूल   आ   गए   हैं ,  इन   छोटे - छोटे, लाल -  लाल   पुष्पों   के   मनोहर   स्तबकों   में   कैसा  मोहक   भाव   है ।  बहुत   सोच - समझकर   कंदर्प   देवता  ने  लाखों   मनोहर   पुप्षों   को   छोड़कर   सिर्फ   पाँच   पुष्पों  को   अपने  तूणीर   में   स्थान   देने   योग्य   समझा  था  ।  एक  यह   अशोक   ही   है ।  लेकिन   पुष्पित   अशोक   को   देख कर    मेरा   मन   उदास   हो   जाता  है ।   इसलिए   नहीं   कि  सुंदर   वस्तुओं  ...

विघानिवास मिश्र : प्रभुजी तुम चंदन हम पानी ( निबन्ध )

  घर  में  पिताजी  और  दो  पितृव्य  पूजा-पाठ  बहुत  निष्ठापूर्वक  करते  है , इसलिए  तीन  होरसे  तो  कम- से - कम घर  में  है  ही  प्रतिदिन  इन  पर  चंदन  और  प्रायः  मलयागिरि  चंदन  ही  घिसा  जाता  है । रक्तचंदन  या  देवीचंदन  तो  नवरात्र  में  या  रविवार  को  ही  इन  होरसों  पर  घिसता  है । इसलिए  चंदन  से  बड़ी  पुरानी  जान - पहचान  है ।  पाँच - छह  वर्ष  का  था , मैं  अपने  बड़े  पितृव्य के  पास  जाकर  चुपचाप  बैठ  जाता  था  और  उनका  मह्मिन  स्त्रोत  पूर्वक  चंदन  घिसना  देखा  करता  था।

भारतवर्ष उन्नति कैसे हो सकती है

आज  बड़े  ही  आनंद  का  दिन  है  कि  छोटे  से  नगर  बलिया  में  हम  इतने  मनुष्यों  को  एक  बड़े  उत्साह  से  एक  स्थान  पर देखते  है ।  इस  अभागे  अलसी  देश  में  जो  कुछ  हो  जाय  वही  बहुत  है ।  हमारे  हिंदुस्तानी  लोग  तो  रेल  की  गाड़ी  है । यघपि  फर्स्ट  क्लास,   सेकेण्ड  क्लास   आदि  गाड़ी   बहुत   अच्छी  -  अच्छी  और  बड़े - बड़े  महसूल  की  इस  ट्रेन  में  लगी  है  पर   बिना  इंजन  सब  नहीं  चल  सकती  ,  वैसे  ही  हिंदुस्तानी  लोगों  को  कोई  चलाने  वाला  हो  तो  ये  क्या  नहीं  कर  सकते ।  इनसे  इतना  कह  दीज...

गिल्लू - रेखाचित्र महादेवी वर्मा कृत

सोनजुही  में  आज  एक  पीली  कली  लगी  है । उसे  देखकर  अनायास  ही  उस  छोटे  जीव  का  स्मरण  हो  आया , जो  इस  लता  की  सघन  हरीतिमा  में  बैठता  था  और  फिर  मेरे  निकट  पहुँचते  ही  कन्धे  पर   कूदकर  मुझे  चौंका  देता था । तब  कली  की  खोज  रहती  थी , पर  आज  उस  लघुप्राणी  की  खोज  है । परंतु  वह  तो  इस  सोनजुही  की  जड़  में  मिट्टी  होकर  मिल  गया  होगा  कौन  जाने  स्वर्णिम  कली  के  बहाने  वहीं  मुझे  चौंकाने  ऊपर  आ  गया  हो ।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का निबंध - भाव या मनोविकार

  अनुभूति  के  द्वंद्व  से  ही  प्राणी  के  जीवन  का  आरंभ होता  है । उच्च  प्राणी  मनुष्य  भी  केवल  एक  जोड़ी  अनुभूति  ही  लेकर  इस  संसार  में  आता  है ।  बच्चे  के  छोटे  से  हृदय  में  पहले  सुख  और  दुख  की  समान  अनुभूति  भरने  के  लिए  ही  जगह  होती  है । पेट  का  भरा  या  खाली  रहना  ही  ऐसी  अनुभूति  के  लिए  पर्याप्त  रहता  है । जीवन  के  आरंभ  में  इन्हीं  दोनों  के  चिन्ह  हँसना  और  रोना  देखे  जाते  है  पर  ये  अनुभूतियाँ  बिल्कुल  समान  रुप  में  रहती  है , विशेष  - विशेष  विषयों  की  ओर  विशेष  - विशेष  रुपों  में  ज्ञानपूर्वक ...

अजन्ता - भगवतशरण उपाध्याय रचित निबन्ध

जिन्दगी  को  मौत  के  पंजों  से  मुक्त  कर  उसे  अमर  बनाने  के  लिए  आदमी  ने  पहाड़  काटा  है । किस  तरह  इंसान  की खूबियों  की  कहानी  सदियों  बाद  आने  वाली  पीढ़ी  तक  पहुँचायी  जाये , इसके  लिए  आदमी  ने  कितने  ही  उपाय  सोचे  और  किये । उसने  चट्टानों  पर  अपने  संदेश  खोदे , ताड़ों  से  ऊँचे  धातुओं  से  चिकने पत्थर  के  खम्भे  खड़े  किये , ताँबे  और  पीतल  के  पत्थरों  पर  अक्षरों  के  मोती  बिखेरे  और  उसके  जीवन - मरण  की  कहानी  सदियों  के  उतारों  पर  सरकती  चली आयी , चली  आ  रही  है , जो  आज  हमारी  अमानत - विरासत  बन  गयी  है ।       इन्हीं  उपायों...

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का निबंध - क्या लिखूँ

मुझे  आज  लिखना  ही  पड़ेगा  ।    अंग्रेजी  के  प्रसिद्घ  निबंध  लेखक  ए० जी० गार्डिनर  का  कथन  है  कि  लिखने  की  एक  विशेष  मानसिक  स्थिति  होती  है । उस  समय  मन में  ऐसी  उमंग - सी  उठती  है , हृदय  में  कुछ  ऐसी  स्फूर्ति  सी  आती  है , मस्तिष्क  में  कुछ  ऐसा  आवेग  सा  उत्पन्न  होता  है  कि  लेख  लिखना  ही  पड़ता  है । उस  समय  विषय  की  चिन्ता  नहीं  रहती ।  कोई  भी  विषय  हो , उसमें  हम  अपने  हृदय  के  आवेग  को  भर  ही  देते  है । हैट  टाँगने  के  लिए  कोई  भी  खूटी  काम  दे  सकती  है । उसी  तरह  अपने  मनोभावों  को  व्यक्त  करने  के  लिए...

ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से - रामधारीसिंह दिनकर का निबंध

  मेरे   घर   के   दाहिने   एक   वकील   रहते   है , जो   खाने - पीने   में   अच्छे   है , दोस्तों   को   भी   खूब   खिलाते  है  और   सभा - सोसाइटियों   में   भी   काफी   भाग   लेते   है । बाल - बच्चों   से    भरापूरा   परिवार ,  नौकर   भी   सुख   देनेवाले   और   पत्नी   भी   अत्यन्त   मृदुभाषिणी । एक   सुखी   मनुष्य   को   और   क्या   चाहिए ?                मगर   वे   सुखी   नहीं   है । उनके   भीतर   कौन - सा   दाह   है , इसे   मैं   भली - भाँति...

आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित निबंध - मित्रता

  जब  कोई  युवा  पुरुष  अपने  घर  से  बाहर  निकलकर  बाहरी  संसार  में  अपनी  स्थिति  जमाता  है ,  तब  पहली  कठिनता  उसे  मित्र  चुनने में  पड़ती  है ।  यदि  उसकी  स्थिति  बिल्कुल  एकांत  और  निराली  नहीं  रहती  तो  उसकी  जान - पहचान  के  लोग  धड़ाधड़  बढ़ते  जाते  है और  थोड़े  ही  दिनों  में  कुछ  लोगों  से  उसका  हेल - मेल हो  जाता  है ।  यही  हेलमेल  बढ़ते - बढ़ते  मित्रता  में  परिणत  हो  जाता  है ।  मित्रों  के  चुनाव  की  उपयुक्तता  पर  उसके  जीवन  की  सफलता  निर्भर  हो  जाती  है ;  क्योंकि  संगति  का  गुप्त  प्रभाव  हमारे  आचरण  पर  बड़ा  भारी  पड़ता...

आत्मकथा विधा की महत्वपूर्ण रचनाएँ

 ●  आत्मकथा विधा      साहित्यकार                                  साहित्य  जैन कवि बनारसीदास           -       अर्ध्दकथा भारतेंदु                              -       कुछ आप बीती कुछ जग बीती अम्बिकादत्त व्यास               -       निज वृतांत स्वामी श्रद्धानंद                   -      कल्याण का पथिक  स्वामी सत्यानंद अग्निहोत्री    -       मुझमें देव जीवन का विकास