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शिवसंकल्पसूक्त

शुक्ल यजुर्वेद के 34वें अध्याय में शिवसंकल्पसूक्त प्राप्त होता है।  इस  मंत्र के दृष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य और  देवता मन है। शिवसंकल्पसूक्त की प्रेरणा मन को एकाग्रचित्त, संयमी और शुभसंकल्पों से युक्त बनाने की है। मन मानव के कर्मों का प्रेरक है। वहीं हमारे उन्नति और अवन्नति का कारण बनता है। हमारा मन ही समग्र ज्ञान का स्रोत होता है।  अतः इस अत्यंत तेज़वान और गतिशील मन को सम्यक गति से गम्य बनाए रखने के लिए उत्तम संकल्पों  वाला होना अपरिहार्य  रूप से आवश्यक है।  

लोक संस्कृति और लोकरंग

 लोक संस्कृति की जीवंतता का कारण उसकी सरलता, मधुरता, समाज का आपसी  सहकार का सुन्दर समन्वय और संस्कृति की जीवंतता का रंग है। यदि आज इस आधुनिक परिवेश में भी लोक संस्कृति ने अपनी सत्ता को बनाये रखा है, तो इसका कारण यह है कि उसके साथ लोक जीवन जुड़ा हुआ है। आज के इस परिवेश में लोक जीवन तेजी से बदल रहा है, पर एक स्थिरता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, अपनी कला के प्रति गहन रुचि, अपनी विरासत को विकास की ओर ले जाने की इच्छा ने इस लोक संस्कृति से जुड़े हुए इन सुन्दर रंगों को बचाकर रखा है ।

गीता का सार्वभौमिक महत्व और उसमें वर्णित गुरुपद की महत्ता

भगवद्गीता का उपदेश किसी एक विचारक या विचारकों के किसी एक वर्ग द्वारा सोची गई प्रवृत्ति या उभरती हुई किसी अधिविघक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, यह उपदेश एक ऐसी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानवता में विश्वास करती ह   गीता भगवान श्रीकृष्ण की विमलवाणी के प्रवाह में एक ऐसा उपदेश है, जिसकी सार्वभौमिकता अक्षुण्ण है और जो धर्म के सच्चे रूप में मानव धर्म को प्रतिबिम्बित करता है। 

सरस्वती वंदना

 वर दे वीणा वादिनी वर दे ! वर दे वीणा वादिनी वर दे ! प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मंत्र नव  भारत में भर दे !