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आचरण की सभ्यता निबंध का सार मेरे अपने शब्दों में

आचरण की सभ्यता - सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित एक ललित भावात्मक निबंध है । जो व्यक्ति के आचरण को प्रमुख बिंदु मानते हुए , उसके सुविकास की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है । सभ्यता की धुरी है व्यक्ति का आचरण उसका व्यवहार , व्यक्ति समाज की वृहत परिणिति अथवा उसकी एक इकाई है । व्यक्ति का आचरण उसके वैयक्तिक जीवन तथा उन्नति के अवसरों को हीं नहीं प्रभावित करता है वरन् पूरे समाज को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसकी उन्नति और अवन्नति का एक निर्धारक तत्व बन जाता है ।

लोक संस्कृति और लोकरंग

 लोक संस्कृति की जीवंतता का कारण उसकी सरलता, मधुरता, समाज का आपसी  सहकार का सुन्दर समन्वय और संस्कृति की जीवंतता का रंग है। यदि आज इस आधुनिक परिवेश में भी लोक संस्कृति ने अपनी सत्ता को बनाये रखा है, तो इसका कारण यह है कि उसके साथ लोक जीवन जुड़ा हुआ है। आज के इस परिवेश में लोक जीवन तेजी से बदल रहा है, पर एक स्थिरता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, अपनी कला के प्रति गहन रुचि, अपनी विरासत को विकास की ओर ले जाने की इच्छा ने इस लोक संस्कृति से जुड़े हुए इन सुन्दर रंगों को बचाकर रखा है ।

गीता का सार्वभौमिक महत्व और उसमें वर्णित गुरुपद की महत्ता

भगवद्गीता का उपदेश किसी एक विचारक या विचारकों के किसी एक वर्ग द्वारा सोची गई प्रवृत्ति या उभरती हुई किसी अधिविघक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, यह उपदेश एक ऐसी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानवता में विश्वास करती ह   गीता भगवान श्रीकृष्ण की विमलवाणी के प्रवाह में एक ऐसा उपदेश है, जिसकी सार्वभौमिकता अक्षुण्ण है और जो धर्म के सच्चे रूप में मानव धर्म को प्रतिबिम्बित करता है।