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ममतामयी माँ

कानों  में  एक  अनकहा  संगीत  घुल   रहा  है हाईवे  का   ये   लम्बा   हो   गया   सफर     अब    जल्दी    कटेगा  बैठे  बैठे  पूरे  बदन  में  जो  दर्द  जाग  उठा  है  उसके    लिए    ये    हसीं    वादियाँ हमदर्द     बनेंगी    आखिर    रोज    प्रदूषण  का    महाभयंकर    दर्द     बिना    कोई  उफ    किये     चुपचाप    सहती   है  पर    कब    तक   ?    हम   कब   चेतेंगे  ? और   इस   ममतामयी   माँ  का   क्षोभ  हरेंगे  जो   हम   सबको   देती   है   इतना   प्...

हँसो हँसो खूब हँसो लाॅफिंग बुध्दा

हँसो   हँसो   खूब   हँसो   लाॅफिंग   बुध्दा हँसो   हँसो   खूब   हँसो   लाॅफिंग   बुध्दा हँसो   हँसो    जमकर   हँसो   लाॅफिंग   बुध्दा हँसो   हँसो   मिलकर   हँसो   लाॅफिंग   बुध्दा हँसो   हँसो    खुलकर   हँसो   लाॅफिंग   बुध्दा हँसो    हँसो    तबीयत   से   हँसो   लाॅफिंग  बुध्दा मुश्किलों    की    कठिन    डगर   पर   हँसो कंक्रीट    की   गढ्ढे   वाली   सड़क   पर  हँसो

बोले ना मन काँहे बैरी

बोले   ना    मन    काँहे    बैरी    काँहे   न   थामी   मोरी   डोरी उतरी   तोहे   अँगना    काँहे  थामी    नाहीं     डोरी     काँहे    थामे   ना   ,  बोले   ना मन    काँहे    बैरी  ,   काँहे   को  बैरी   रे   काँहे   को   बैरी  ...  बोले  ना  मन  .. ऊँची   उड़ी    नीले    नीले   अम्बर   में स्वच्छ    श्वेत   रंग   पतंग   जिस   पे  चढ़   जाये    सतरंगी    हर   वर्ण

आशादीप

अन्तस   को   हिलोरे   दे जग    ये    सब   कुछ  नव   नित   नूतन परम    विनीत    कृपालु जगकरता     कारण   हो  कार्य   हो   जगजीवन   का    चक्र  तुम्हीं    से  ,    सृष्टिकाल    के बंधन   ,   लगे   क्या   वास्तव   है  ? यथार्थ    है   ?   या   फिर   इसके ऊपर    कोई    और    ही    चमत्कार  शीत   लहरी    सी    मन    कँपकँपाये कहाँ     उद्गम  ,  कहाँ   से   बह   निकली   थी

बस यूँही

दिन   खुशहाल  है ।  हर  उम्मीद   खुशी  पर  टिकती  है ।  स्वप्न  भी   अपने   अनरुप  गढ़े  जाते   है  ।   वास्तविकता  से    दूर  या  उसका    मिलाजुला    रुप    या   किसी  अन्य  दृष्टि   से    संसार    को     देखने   की   चेष्टा  या   उससे    दूर  जाना  ।  यथा र्थ   को  खिंचना ,  या   जो    घटित   हो   रहा  है  या  जो  शंकित    घटना    मन   को   उद्वेलित  कर  आंदोलित    करती  है  ,   उससे    भागना   या पलायन  या  वास्तविक    को   ना  देख  पाना  ;   खरबूजा   हम...

मीठी बारिश

अम्बर   तले    छाँव   नील    गगन   में बादल    गुजरे    ,   मेरी    छोटी    गुड़िया  प्यारी     करे    देख    उन्हें    इशारा बताओ    तो    मम्मी    जरा    इनमें  कौन    छिपा  ?   किस   की   है रुई    सी     मुलायम    सवारी कौन     सवार    होकर    इन धीमी -  धीमी   गाड़ियों   से   जाता  है ? वह     किधर   ,   कहाँ    जाता   ?

खिड़की खोल दो

खिड़की    खोले    बिना   दीदार    कैसे    होगा  ,   जानकर    जो अनजान    बने    परिचय   कैसे पूर्ण    होगा   ?    जगाये   हम   उसको   जो गहरी   नींद    में    अपलक    शांत     चुप    सो   रहा  ,   पर    जगाये   कैसे उसको    जो    मात्र    अभिनय   कर स्व   -  पर    को    छल    रहा  ? कैसे   देखेंगे   इस   पल्लव   प्रात   को

जीवन पूर्ण को

कड़वाहट    घुल    गई    थी जिस    दिन    मौन    रहकर   सबकुछ     सुना    था एकपक्ष    रहता    सदैव   ही   अधूरा वार्ता    मन   से    मन    की    हो , आत्म   से   परमात्मा    की    हो , अपरिहार्य    तो    दोनों    है  , जिनके    बिना    फिर    ये   संवाद   अधूरा  है । दिन   को   आवश्यक   है   जैसे   रात  दुख     को      आपेक्षित    है    सुख  निराशा     को     मुखरित    है    आशा  का    मंगलमय    प्रात   अरुणोदय  वैसे     ही     आवश्यक    है...

आपनो लाल ललना की

शांत   स्फुरित    मन   मलयज   सा   प्रेमानंद लहर    बन     गह्वर    देती     समीरण ऊँची  -   ऊँची     तरंग फेनिल    चक्रवात    दुधिया मथथा    मटके    में     ज्यों दधि  -   माखन     मिश्री     घुलती    अदृश्य  करुणा    सी    स्नेह    भर -  भर     लुटाती आँचल    की    ओट    में    छिपा संसार    की     नजरों    से    बचा

शुभ होली

रंग    जिंदगी    का      रंग    खुशी   का रंग   हँसी     का    रंग    कमोबेश घटती  -   बढ़ती     मुश्किलों   की अटखेली     राहों     का  रंग    किताबों    अखबारों    के संग     गर्म      चाय    की    चुस्की   का या     खुली     में     बहती मन्द   -   मन्द    ताजी    हवा 

माँ सीता संग विराजे रामहृदयकुँज

चलता    रहता    अंतहीन    राहों    में क्या   पाने    की    तलाश    इसे जिसको    पाना  ,  जिसको   ढूँढा   जाना  है , वह  तो   अन्तर्उर    में    साक्षात   विराजा  है । किन   ख्यालों   में   खोये   हुए  किन    आश्चर्यों    में    जा    पड़े उफनता    सा     ज्वार  ,   मन    को 

बबूल का फूल

बबूल     जो    मेरी    छत    के किनारे    सटकर    छतरी   सा   गुल्म लगाये   आ    खड़ा   है । उसकी   डाली   में    वासंती   मौसम  ने   दी    है    आहट    उसकी   कली  कच्चे    धनियों    के    बीजों   की आपस    में    जुड़ी    लंबी    कतार उसके    फूल    शहतूत    फल   से  कुछ    कुछ    लम्बे     दिखते   अपार

लिख देता ये कथा कौन

नन्हा    पौधा    खेल    रहा    है दो    कलियों    में    झुरमुट  -  सा देखा   हो   चाहे   ना   देखा   हो   किसी   न मस्त   बहारों    में    हो   के   मगन    खड़ा  -   खड़ा     आकाश    को   ताकता कोई    स्वप्न     बसा    रहा    उर   में   या कोई     मीठा    सा    संवाद    चल    रहा हो    मौन      अधर     पल्लवों    से

दुनिया के रंग सारे

ओ   रे     राधा    के    श्याम ओ    रे    यशोदा    के     लाल मोहे     रंग     दो    आज    ऐसो   चटक    लाल   गुलाल दुनिया    के    रंग    सारे    पीछे    फीके     पड़     जाए  दुनिया     के     रंग     सारे   पीछे     फीके     पड़     जाए  मेरे    पैरों    में   भर   दो    ऐसी   ताल

तालमेल हीं जुदा है ।

आजकल   यहीं   मसल्ला   गर्म   है । बच्चों   के    भविष्य   को   लेकर   माँ  -   बाप    चिंतामग्न   है । एक  -  पीढ़ी    दूजी   पीढ़ी   तीसरी    पीढ़ी के    बीच    संघर्ष   का   व्यवधान   बड़ा   है । कहाँ   जाए    किससे   कहे   अपनी   दुविधा जब   आपसी    समझ    का तालमेल    हीं     जुदा   है ।

जिस दिन ...!

भाव   भी   मेरा   अभाव   भी   मेरा जिस   दिन   इन    सबको   त्याग   दूँगी हर   बंधन    से     मुक्त    स्वयं    से    उन्मुक्त    हो असीम    अंतहीन    परम   चैतन्य   से मिल     अगाध    आनंद - कुँज    को पाऊँगी    अपनी    सितार   में   मिला   उसे मधुर    राग    जगजीवन    विश्राम   का

मरा मरा करके

मरा    मरा       करके      तुमने   राम      नाम      बतलाया  तुतुलाती     बोली      को     तुमने   इतना     कुछ      समझाया  थाम     के      मेरी     उँगली    मुझको     काँटों    में    चलना    सिखलाया  अकेले    पथ     पर     भी     निडर    हो आगे     बढ़ना     सिखाया सुख  -   दुख    जीवन   का   अभिन्न    भाग   है

दो मिनट

वृक्षों   पौधों   पर   पतझड़    वसंत   के    साथ    छोटे    सुर्खलाल    रक्तरुप    नन्हें   कपोले    खिल   आए   है , टहनी   अभी   खाली   खाली    है पर    अभी   भी   कुछ    पत्ते   सूखे

शब्दों को रहने दो !

शब्दों   को   रहने   दो शब्दों    को    कुछ    ना    कहने   दो ये   भावों   की    वीणा   की   झंकार   है  ये   अन्तर्मन   का   मधुर   सहकार्य   है  ना   सुन   कर  भी   कैसे   अनसुना   करो  के , कहे   कि    इस   वीणा   की   हरेक   तार

मुझ थके को

धरा   पर   स्वप्न    सजाए   जीता   है   जीव खोजता    है    परमेश्वर    को कहाँ   मिलेंगे   ईश मन   का    हारा   तन    की    दुर्बल   छाया  आँचल    मलिनता    का  दंभ   द्वेष   और   घृणा   का   खारा   सागर ईर्ष्या   की   अग्नि   प्रचण्ड   नेह   दाहक

स्नेह ममता का

प्रातः   की   धूप   लगती   है  प्यारी  वो   माँ   बन  लुटाने   जो  आ   जाती  है इस   जग   पर   अपनी   ममता   सारी आँचल  में   भर   लेती   है  अपने  प्यारों  को जीवन  को  सँवारती  है   सहलाती  है  प्यार   भरी   थपकी    दे   नित निंदिया   भरे    लोचन   को   जगाती    है

शर्बत

गर्मियों       का     मौसम    जब    तपता चौराहों   पर   ,   गलियों    में गन्ने    का    ठंडा    मीठा    रस    तब    बिकता खट्टा    नींबू     मौसमी    शर्बत     कच्ची    केरी     जलजीरा     पुदीना    और    शर्बत  - ए -  खसखस