शब्दों को रहने दो !

शब्दों   को   रहने   दो

शब्दों    को    कुछ    ना    कहने   दो

ये   भावों   की    वीणा   की   झंकार   है 

ये   अन्तर्मन   का   मधुर   सहकार्य   है 

ना   सुन   कर  भी   कैसे   अनसुना   करो  के ,

कहे   कि    इस   वीणा   की   हरेक   तार

एक    एक    सुर    भावों   से   मिल   बोलेगा

हरेक   राग   विस्तृत   होकर   गूँजेगा

सत्य   को   स्वीकार   किया   है   इसने

सत्य   को    आश्रय    दिया    है   इसने

झूठा  है  ये   बंधन   ,   मुझे   मत   बाँधों  इसमें

हूँ   भावों   की   मुक्त   चेतना  , परमचेतना   

की  उपासिका   श्रध्दा   भक्ति   विश्वास   मेरा

हर   क्षण   भावों   का   सुंदर  संसार  बसाते 

भगवती   वंदन    उसके   श्री   चरणों   में

सदा   अपना     शीश     झुकाते  !


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