राम नाम का उर में ध्यान धरे
बन न क्लांत ओ विवर बीच
पथिक अनजान
निशा की गहन अंध में
भी खिलती चंद्र ज्योत्सना
सितारों की जगमग से सजता है
व्योम का अनन्त पट्टचित्र ।
श्वेत कमल की पुष्प शोभा सी
कुमदिनी साधना सा मन बनाती ।
अपनी विमल शुभ्रता पथ से
जाते अविराम नयनों को निरंतर
आशा नव पथ की दिखलाती ।
नूतन पथ जीवन का स्वागत करता ।
जीवन सुरभि सुभावों से सिंचित
कर्त्तव्य कर्म नेह डोर सुमनों से पुलकित।
अपनी वेणु ध्वनि से तरंगित
नूतन स्वर्णिम कल का अवगाहन करो ।
श्रध्दा - भक्ति - प्रेम से आलोकित हो
मन के आले में दीप प्रकाश करो ।
निस्वार्थ भाव सेवा सुफल मन की
ले सतत् निश्छल अविचल सत् - संकल्प ।
गहन तम संकेत है , होना न विचलित
अरुणोदय की मंगलबेला में अब
कुछ ही समय अवशिष्ट ।
होने को है नव - चेतना का
जग में मंगलविधान
राम नाम तारक मंत्र
उर में राम शील - शक्ति का आह्वान ।
आनंद गुणग्राही ज्ञान कर्म धर्म का धाम ।
होना न तू कभी हताश
जपते रहने पथ पर तू राम नाम ।
राम नाम का उर में ध्यान धरे ।
बन न क्लांत ओ विवर बीच
पथिक अनजान !
राम नाम का उर में ध्यान धरे ।
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