मरा मरा करके
मरा मरा करके तुमने
राम नाम बतलाया
तुतुलाती बोली को तुमने
इतना कुछ समझाया
थाम के मेरी उँगली
मुझको काँटों में चलना सिखलाया
अकेले पथ पर भी निडर हो
आगे बढ़ना सिखाया
इसमें न तुम आगे हो
न तुम पीछे हो
गिरने से डरना ना
ठोकर खा हो जो चोटिल
कभी रुकना ना
मिले जब खुशियाँ जीवन में
रहना सदा शील विनम्र मन से
कृतज्ञ बन ईश्वर का
नित उसका अन्तर्उर में ध्यान रखना
सब उसका , सब उससे है
चलचित्तवन में सदा ये ज्ञान रखना
सृष्टि के कण - कण में
वहीं एक सुमधुर स्नेह गंग धारा है
जिससे होकर जाता मन
ईश्वर को पाता है ।
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रचना को सम्मिलित कर उसे स्थान देने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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