दीप - भाव
मौन रहा , और कुछ न कहा ..
शब्दों को निः शब्द किया
उत्तर को ही प्रश्न किया ?
एकांतर सीधी सरल रेखा को
अन्वांतर का रुप दिया ।
त्रासदी की विकट वेदना ,
विश्व करुणा ने अश्रुपात किया ।
संवेदना वृक्ष हो रहा उपेक्षित ,
शुष्कता के खंडहर को ममताजल अपेक्षित
सच्चिदानंदस्वरुप दीप हृदय तल में अवस्थित ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जिथा का मंत्र
स्वर गूँज हो
अन्तरतम के तार से
चैतन्यता का विशुध्द स्वरुप बन आज वादक
सत्य भाव का राग दे ।
तिनका - तिनका अपना कंठ खोल
सितार की हरेक झंकार ,
एक करुण क्रन्दन ध्वनि निस्सीम को पुकार दे ।
मानवता सोई या खोई ,
अपने पर आकर ज्यों गई उसकी अपनी धुरी रुकी।
मार्ग अवरुध्द दिशा पथभ्रष्ट होना पावें ।
निरंतरता को बना अपनी गति का सहगामी ,
अचल - विचल द्वंद्व , क्षण रुक
निश्चिंत श्वास की एक गहरी माप ले ।
अथ से इति ... के पार
एक गहरी निश्छल थाह की माप ले ।
अहं बुध्दि की कुबुध्दि से बाहर
अशोधित की यहीं विनम्र याचना ,
मंथन की आवश्यकता ले अपने में आकार ।
रतन छिपे सुभाव के सरस रत्नाकर मोती से
मन घट के ऊपर अभी - अभी कालकूट
सघन हो निकला है !
हर - हर महादेव चरणों की गति अनुरागी है ।
समर्पण की चंदन - चर्चित सुरभि ही विश्वव्यापी है।
आराध्य के लिए स्व से पूर्व - हो अर्पित ।
भेदों में अभेद वहीं सच्ची तात्विक दृष्टि
अमिय गरल के क्रोड में छिपी
सोम सुधा की पिपासा ,
जिजीविषा की स्वयमेव पवित्र होती हर धारा ।
उजियारे - उज्ज्वलता का प्रकाश ले साथ
हरेक अंधकार का क्षोभ हरे ।
विरोधों में अवरध्द हो जाए ,
वह गति नहीं ।
पर का मोल नहीं , और स्व में रहा जाए ।
वह स्वाहा - स्वधा प्रज्ज्वलित प्रदीप्त अग्नि
तेजोमयी मानवता स्वरुप साहस नहीं ।
दया - त्याग और प्रेम - करुणा रुपी सिक्त
दीपक लौ जले , तम को हरे आलोक भरे ।
विश्व ललाट की सुंदर आभा वह ,
शांत - स्वरुप निमग्न प्रभु भक्ति में
सहज ही दमके , दीप - भाव मौन रहे
और कुछ न कहे .......!
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