भारतवर्ष उन्नति कैसे हो सकती है

आज  बड़े  ही  आनंद  का  दिन  है  कि  छोटे  से  नगर  बलिया  में  हम  इतने  मनुष्यों  को  एक  बड़े  उत्साह  से  एक  स्थान  पर देखते  है ।  इस  अभागे  अलसी  देश  में  जो  कुछ  हो  जाय  वही  बहुत  है ।  हमारे  हिंदुस्तानी  लोग  तो  रेल  की  गाड़ी  है । यघपि  फर्स्ट  क्लास,   सेकेण्ड  क्लास   आदि  गाड़ी   बहुत   अच्छी  -  अच्छी  और  बड़े - बड़े  महसूल  की  इस  ट्रेन  में  लगी  है  पर   बिना  इंजन  सब  नहीं  चल  सकती  ,  वैसे  ही  हिंदुस्तानी  लोगों  को  कोई  चलाने  वाला  हो  तो  ये  क्या  नहीं  कर  सकते ।  इनसे  इतना  कह  दीजिए  '  का  चुप  साधि  रहा  बलवाना ʼ  फिर  देखिए  हनुमान  जी  को  अपना  बल  कैसे  याद  आता  है । 

सो  बल  कौन  याद  दिलावे ।  या  हिंदुस्तानी  राजे - महाराजे ,  नबाव ,  रईस  या  हकाम ।  राजे  -  महाराजों  को  अपनी  पूजा ,  भोजन  ,  झूठी  गप  से  छुट्टी ।  नहीं   हाकिमों  को  कुछ  तो  सरकारी  काम  घेर  रहता  है ,  कुछ। बाल  घुड़दौड़   थियेटर   में  समय  लगा  ।  कुछ  समय   बचा  भी  तो  उनको  क्या  गरज  है  कि  हम   गरीब  काले  आदमियों  से  मिलकर  अपना  अनमोल  समय   खोवें ।  बस  वहीं  मसल रही ।

 
"  तुम्हें  गैरों  से  कब  फुरसत  हम  अपने  गम  से  कब  खाली ।
चलो  बस  हो  चुका  मिलना -  मिलाना  न   हम  खाली  न  तुम  खाली  ।  "

पहले   भी  जब  आर्य  लोग  हिंदुस्तान  में  आकर  बसे  थे  , राजा  और   ब्राह्मणों  के  जिम्मे  ये  काम  था  कि  देश  में  नानाप्रकार   की   विघा  और   नीति   फैलावें  और   अब  भी  ये  लोग  चाहें  तो  हिंदुस्तान  प्रतिदिन  क्या  प्रतिछिन  बढ़े । पर  इन्हीं  लोगों  को  निकम्मेपन  ने  घेर  रखा  है ।
हम  नहीं  समझते  इनको  लाज  भी  क्यों  नहीं  आती  कि  उस  समय  में  जबकि  इनके  पुरखों  के  पास  कोई   भी  सामान  नहीं  था  तब  उन  लोगों  ने  जंगल  में  पत्ते  और   मिट्टी  की  कुटियों  में  बैठकर  के  बाँस  की  नालियों  से  जो  ताराग्रह  आदि  बेध  करके  उनकी  गति  लिखी  है  वह  ऐसी  ठीक  है  कि  सोलह  लाख  रुपये  के  लागत  की  विलायत  में  जो  दूरबीन  बनी  है ,  उनसे  उन  ग्रहों  को  बेध  करने  में  भी  वह  गति  ठीक  आती  है  और   जब   आज  इस  काल  में  हम  लोगों  को  विघा  के  और  जनता  की  उन्नति  से  लाखों  पुस्तकें  और   हजारों  यंत्र  तैयार  है  तब  हम  लोग  निरी  चुंगी  के  कतवार  फेंकने  की  गाड़ी  बन  रहे  है ।  यह  समय  ऐसा  है  कि  उन्नति  की  मानो  घुड़दौड  हो। रही  है । अमेरिकन  अंग्रेज  फ्रांसीस  आदि  तुरकी  ताजी  सब  सरपट्ट  दौड़े   जाते  है  ।  सबके  जी  में  यही  है  कि  पाला  हमी  पहले  छू  ले  ।  उस  समय  हिन्दू  काठियावाड़ी  खाली  खड़   खड़   टाप  से  मिट्टी  खोदते  है  ।  इनको  औरों  को  जाने  दीजिए  ,  जापानी  टट्टओं  को  हाँफते  हुए  देख  करके  भी  लाज  नहीं आती  है  ।  यह  समय  ऐसा  है  कि  जो  पीछे  रह  जायेगा  फिर  कोटि  उपाय  किये  भी  आगे  न  बढ़  सकेगा । इस  लूट  में  इस  बरसात  में  भी  जिसके  सिर  पर  कम्बख्ती  का  छाता  और  आँखों  पर  मूर्खता  की  पट्टी  बँधी रहे  उन  पर  ईश्वर   का  कोप  ही  कहना  चाहिए  ।  मुझको  मेरे  मित्रों ने  कहा  था  कि  तुम  इस  विषय  पर  कुछ  कहो  कि  हिंदुस्तान  की  कैसे  उन्नति  हो  सकती  है ।  भला  इस  विषय  पर  मैं  और  क्या  कहूँ ?  भागवत  में  एक  श्लोक  है ,

 "  नृदेहमाघं  सुलभं  सुदुर्लभं  प्लवं  सुकल्पं  गुरुकर्णधारं  मयाड्नुकूलेन  नभः। स्वतेरितं  पेमान्  भवाब्धिं  न  तरैत्  स  आत्माहा । "

 भगवान   कहते  है  कि  पहले  तो  मनुष्य  जन्म  ही  बड़ा  दुर्लभ  है  सो  मिला  और। उस  पर  गुरु  की  कृपा  और   उस पर  मेरी   अनुकूलता  इतना  सामान  पाकर  भी  जो  मनुष्य  इस  संसार   के  पार  न  जाय  उसको  आत्महत्यारा  कहना  चाहिए  ।  वही  दशा  इसी  समय  हिंदुस्तान  की  है ।

बहुत  लोग  ये  कहेंगे  कि  हमको  पेट  के  धंधे  के  मारे  छुट्टी ही   नहीं  रहती  है। बाबा  हम  क्या  उन्नति  करे । तुम्हारा  पेट  भरा  है  तुमको  दून  की  सूझती  है ।  यह  कहना  उनकी  बहुत   भूल  है ।  इंग्लैंड  का  पेट  भी  कभी  यों  ही  खाली  था ।  उसने  एक  हाथ  से  अपना  पेट  भरा  दूसरे हाथ  से  उन्नति   के  काँटों   को   साफ  किया  ,  क्या  इंग्लैंड  में  किसान ,  खेतवाले , गाड़ीवाले ,  गाड़ीवान , मजदूर  , कोचवान  आदि  नहीं  है  ?  किसी   भी  देश  में  सभी  पेट  भरे  हुए  नहीं  होते । किंतु  वे  लोग जहाँ  खेत जोते - बोते है वहीं  उसके  साथ  यह  भी  सोचते  है  कि  ऐसी  कौन  सी  नई  कल  या  मसाला  बनावें  जिसमें  इस  खेत  में  आगे  से  दून  अन्न  उपजे  । विलायत  में  गाड़ी  के  कोचवान  भी  अखबार  पढ़ते  है । जब  मालिक  उतरकर  किसी  दोस्त  के  यहाँ  गया उसी  समय  कोचवान  ने  गद्दी  के  नीचे  से  अखबार  निकाला ।  यहाँ  उतनी  देर  कोचवान  हुक्का  पियेगा  व  गप्प  करेगा ।  सो  गप्प  भी  निकम्मी । ' वहाँ  के  लोग  गप्प  में  हीं  देश  के  प्रबंध  छाँटते  है । '  सिध्दान्त  यह  है  कि  वहाँ  के  लोगों  का  यह  सिध्दान्त  है  कि   एक छिन  भी  व्यर्थ  न  जाए  ।  उसके  बदले  यहाँ  के  लोगों  को जितना  निकम्मापन  हो  उतना  ही  वह  बड़ा  अमीर  समझा  जाता  है ।  आलस  यहाँ  इतना  बढ़  गया  है  कि  मलूकदास  ने  दोहा  ही  बना  डाला  -  अजगर  करे  न  चाकरी  पंछी  करे  न  काम ।  दास  मलूका  कहि  गयी  सबके  दाता  राम । चारों  ओर  आँख  उठाकर  देखिए  तो  बिना  काम  करने  वालों  की   हीं  चारों  ओर   बढ़ती  है ,  रोजगार  कहीं  कुछ  भी  नहीं ।  चारों  ओर  दरिद्रता  की  आग  लगी  हुई  है । किसी  ने  बहुत  ठीक  कहा  है  कि  दरिद्र  कुटुम्बी  इस  तरह  अपनी  इज्ज़त  को  बचाता  फिरता  है  जैसे  लाजवती  बहू  फटे  कपड़े  में  अपने  अंग  को  छिपाये  जाती  है । वही  दशा हिंदुस्तान  की  है । मुर्द़ुमशुमारी  की  रिपोर्ट  देखने  से  स्पष्ट  होता  है  कि  मनुष्य  दिन-दिन  यहाँ  बढ़ते  जाते  है  और  रुपया  दिन-दिन  कीमती  होता  जाता  है ।  सो  अब  बिना ऐसा  उपाय  किए  काम  नहीं  चलेगा  कि  रुपया  भी  बढ़े  और  वह  रुपया  बिना  बुध्दि  बढ़े  न  बढ़ेगा । भाईयों  राज - महाराजाओं  का  मुहँ  मत  देखो , मत  यह  आशा  रखो  कि  पंडित  जी  कथा  में  ऐसा  उपाय  बतलावेंगे  कि  देश  का  रुपया  और  बुध्दि  बढ़े ।  तुम  आप  कमर  कसो ,  आलस  छोड़ो ,  कब  तक  अपने  को  जंगली  हूस  मूर्ख  बोदे  डरपोकने  पुकरवाओगे ।  दौड़ों  इस  घुड़दौड़  में  जो  पीछे  पड़े  तो  फिर   कहीं  ठिकाना  नहीं ।  '  फिर  कब  राम  जनकपुर  ऐहैं  '  अबकि  पीछे  पड़े  तो  फिर  रसातल  ही  पहुँचोगे ।

अब  भी  तुम  लोग  अपने  को  न  सुधारो  तो  तुम्हीं  रहो ।  और  वह  सुधारना  भी  ऐसा  होना  चाहिए   कि  सब  बात  में  उन्नति  हो । धर्म  में ,  घर  के  काम  में ,  रोजगार  में ,  शिष्टाचार  में ,  चालचलन  में ,  शरीर में , बल में ,  समाज  में , युवा  में , वृध्द  में ,  स्त्री  में ,  पुरुष  में , अमीर  में ,  गरीब में, भारतवर्ष  की  सब  अवस्था ,  सब  जाति ,  सब  देश  में  उन्नति  करो । सब  ऐसी   बातों को छोड़ो जो तुम्हारे इस पथ के कंटक हो । चाहें तुम्हें लोग निकम्मा कहें या नंगा कहें , कृस्तान कहें या भ्रष्ट कहें , तुम केवल अपने देश की दीन दशा को देखो और उनकी बात मत सुनो। 

" अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः स्वकार्यं साधयेत् धीमान् कार्यध्वंसो हि मूर्खता । "

जो   लोग  अपने   को  देश   हितैषी  कहलाते   हों   वह अपने सुख   को   होम  करके   धन  और  मान   का  बलिदान   करके   कमर   कसके  उठो ।   देखा - देखी   थोड़े   दिनों   में सब  हो   जायेगा । अपनी  खराबियों   के   मूल   कारणों  को खोजो ।  कोई   धर्म   की   आड़  में , कोई   देश   की  चाल की   आड़  में , कोई  सुख  की  आड़  में   छिपे  है ।  उन  चोरों को  वहाँ  से   पकड़कर   लाओ ।  उनको  बाँधकर  कैद  करो । इस  समय  जो   जो  बातें  तुम्हारी  उन्नति  पथ  की   काँटा हों , उनकी   जड़   खोदकर   फेंक  दो । अब  यह  प्रश्न  होगा कि  भाई   हम  तो  जानते  हीं  नहीं   कि   उन्नति   और सुधारना   किस   चिड़िया  का   नाम  है ?  किसको   अच्छा समझे । क्या  लें  क्या   छोड़े ?  तो   कुछ  बातें  जो   इस समय  शीघ्रता   से   मेरे   ध्यान  में  आती   हैं   उनको  मैं कहता   हूँ , सुनो - 

सब  उन्नतियों  का  मूल  धर्म  है ।  इससे  सबसे  पहले  धर्म  की  ही  उन्नति  करनी  उचित   है । देखो , अंग्रेंजों   की  धर्मनीति  राजनीति   परस्पर  मिली  है ।  इससे  उनकी  दिन - दिन  कैसी  उन्नति  होती  है ।  उनको  जाने  दो ,  अपने   ही  यहाँ  देखो ।  तुम्हारे  यहाँ  धर्म   की  आड़   में  नानाप्रकार   की   नीति   समाज   गठन  वैघक  आदि   भरे   हुए  है ।।  दो  एक   मिसाल   सुनो ।  यहीं। तुम्हारा   बलिया   का   मेला  और  यहाँ  स्थान   क्यों   बनाया  गया हैं ।  जिससे  जो  लोग  कभी  आपस  में  नहीं  मिलते  दस -  दस  ,  पाँच-पाँच  कोस  से   वे   लोग  एक   जगह  एकत्र  होकर   आपस  में  मिले । एक -  दूसरे  का   सुख  -  दुख   जाने । गृहस्थी  के  काम   की   वह  चीजें  जो  गाँव   में  नहीं  मिलती   यहाँ  से  ले  जायँ ।  एकादशी   का  व्रत   क्यों  रखा  है ?  जिससे  महीने  में  दो  उपवास   से   शरीर  शुध्द  हो  जाय ।  गंगा  जी  नहाने  जाते  है   तो पहले  पानी   सिर  पर  चढ़ाकर   तब  पैर  पर   डालने   का  विधान  क्यों  है  ?  जिससे  तलुए   से  गरमी  सिर  में  चढ़कर   विकार  न  उत्पन्न  करे।  दीवाली  इस  हेतु  है  कि   इसी  बहाने   सालभर  में   एक   बेर   तो  सफाई। हो  जाये । होली  इसी  हेतु  है  कि  बसंत  की  बिगड़ी   हवा  स्थान -  स्थान   पर   अग्नि  जलने  से  स्वच्छ   हो  जाए  । यही  तिहवार   ही   तुम्हारी  म्युनिसिपालिटी  है ।  ऐसे  सब  पर्व  सब   तीर्थव्रत  आदि  में   कोई   हिकमत  है ।  उन  लोगों  ने  धर्मनीति  और   समाजनीति  को  दूध  पानी  की। भाँति   मिला  दिया  हैं ।  खराबी  जो  बीच  में  भई  है  वह  यह  है  कि  उन  लोगों  ने  यह  धर्म  क्यों  मान  लिए   थो  इसका   लोगों  ने  मतलब  नहीं  समझा  और   इन  बातों  को   वास्तविक   धर्म   मान  लिया ।  भाइयों ,  वास्तविक   धर्म   तो  केवल   परमेश्वर  के   चरण  कमल   का   भजन  है ।

ये  सब  तो   समाज   धर्म   है ।  जो  देशकाल   के  अनुसार   शोधे  और   बदले  जा  सकता  है ।  दूसरी  खराबी  यह  हुई   है  कि  उन्हीं  महात्मा   बुध्दिमान   ऋषियों  के  वंश  के  लोगों  ने  अपने  बाप  दादों  का  मतलब   न  समझकर  बहुत   से  नये - नये  धर्म   बनाकर   शास्त्रों  में  धर  दिये ।  बस  सब  तिथि  व्रत  और   सभी  स्थान   तीर्थ  हो  गए  ।  सो  इन  बातों   को  अब  एक  बेर  आँख   खोलकर  देख  और  समझ  लीजिए   कि  फलानी  बात  उन  बुध्दिमान   ऋषियों  ने  क्यों   बनायी  और   उनमें  जो  देश  और   काल   के  अनुसार   अनुकूल   और   उपकारी  हो  उनको  ग्रहण  कीजिए  ।  बहुत  सी  बातें  जो  समाज  विरुध्द। मानी  जाती  है  किंतु  धर्मशास्रों  में   जिनका  विधान  है  उनको  चलाइए ।  जैसे  जहाज   का  सफर  ,  विधवा  विवाह  आदि ।  लड़कों   को  छोटेपन  में  हीं  ब्याह   करके  उनका  बल ,  बीरज ,  आयुष्य  सब  मत  घटाइए ।  आप   उनके  माँ  बाप  है  या  शत्रु  है ।  वीर्य  उनके  शरीर  में  पुष्ट  होने  दीजिए।  नोन  तेल  लकड़    की  फिक्र  करने  की  बुध्दि  सीख  लेने  दीजिए।   तब  उनका  पैर  काठ  में  डालिए  ।  कुलीन  प्रथा  बहुविवाह  आदि  को  दूर  कीजिए।  लड़कियों  को  भी  पढाइयें  किंतु  इस  चाल  से  नहीं  जैसे  आजकल। पपढ़ायी  जाती  है ,  जिससे  उपकार  के  बदले  बुराई   होती  है  ।  ऐसी  चाल  से  उनको   शिक्षा  दीजिए   कि  वह  अपना  देश  और   कुल  धर्म   सीखें , पति  की  भक्ति  करें  और   लड़कों   को  सहज  में  शिक्षा  दे ।  नानाप्रकार  के  मत  के   लोग  आपस  में  बैर  छोड   दे ,  यह  समय   इन झगड़ों   का  नहीं, हिंदू , जैन ,  मुसलमान  सब  आपस  में  मिलिए  ,  जाति  में  कोई   चाहें  ऊँचा  हो  ,  चाहे  नीचा  हो  सबका  आदर  कीजिए  ,  जो  जिस  योग्य  हो  उसे  वैसा  मानिए।   छोटी  जाति  के  लोगों  का  तिरस्कार   करके  उनका  जी  मत  तोड़िए ।  सब  लोग  आपस  में   मिलिए  ।

अपने   लड़कों   को   अच्छी  से  अच्छी  तालीम  दो ।  पिनशिन   और   वजीफा  या  नौकरी  का  भरोसा  छोड़ो ।  लड़कों। को  रोजगार   सिखलाओ । विलायत  भेजो ।  छोटेपन  से। मेहनत  करने  की  आदत   दिलाओ ।  बंगाली , मराठा , पंजाबी ,  मदरासी ,  वैदिक ,  जैन , ब्राह्मण  ,  मुसलमान  सब  एक  का  हाथ   एक  पकड़ो ।  कारीगरी  जिसमें  तुम्हारें  यहाँ  बढ़े  तुम्हारा  रुपया  तुम्हारे  ही  देश  में  रहे  वह  करो । देखो  जैसे  हजार  धारा   होकर  गंगा  समुद्र  में  मिली है  वैसे  ही  तुम्हारी  लक्ष्मी  हजार  तरह  से  इंग्लैंड  , फ्रांसीस  ,  जर्मनी ,  अमेरिका   को  जाती  है ।  दियासलाई   जैसी  तुच्छ   वस्तु  भी  वहाँ  से  आती  है ।  जरा  अपने  को  देखो । तुम   जिस  मारकीन   की  धोती  पहने  हो  वह  अमेरिका   की  बनी  है ।  जिस  लंकलाट  का   तुम्हारा  अंग। है   वह  इंग्लैंड   का  है ।  फ्रांसीस   की  बनी  हुई   कंघी  से  तुम  सिर   झारते   हो ।  और  जर्मनी   की  चरखी  से  बनी  बत्ती   तुम्हारे  सामने  जल  रही  है ।  यह  तो  वही  मसल  हुई   एक  बेफिकरे  मंगनी  का  कपड़ा  पहनकर  किसी  महफिल  में  गए ।  कपड़े  को  पहचानकर   एक   ने  कहा  अजी  अंगा  तो  फलाने  का  है ।  दूसरा  बोला  अजी  टोपी  भी  फलाने  की   है   तो  उन्होंने   हँसकर  जबाव   दिया  कि  घर  की  तो  मूँछ। ही  मूँछ   हैं ।  हाय , अफसोस ,  तुम   ऐसे  हो  गए   कि  अपने  निज  की  काम  की  वस्तु  भी  नहीं  बना  सकते ।  भाइयों ,  अब  तो  नींद  से   चौंकों  ,  अपने  देश  की  सब  प्रकार  से  उन्नति  करो ।  जिसमें   तुम्हारी   भलाई  हों  वैसी  ही  किताब  पढ़ो ,  वैसे  ही  खेल  खेलो ,  वैसे  ही  बातचीत   करो ।

परदेशी   वस्तु   और   परदेशी   भाषा  का  भरोसा  मत  रखो । अपने  देश  में  अपनी  भाषा  में   उन्नति  करो ।

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