संदेश

काश का भरोसा काँच सा

काश   से   निकल   बाहर खुली  हवा  में  खुद  को  हहराना  दो  थोड़ा - थोड़ा बंद   रहकर    सीलन   की   बदबू    छाई   की बारिश    से    जमीन   पर    जम   आई   काई   है दोष   नहीं   किसी  का   ,  काश  का   भरोसा  काँच  सा

चलो देख आए

हवाओं   से   दूर   नीलगगन   के  साथ  समंदर   का   तरंगायित   दर्पण हरियाली   का   तृण -  तृण लहराता  धरा   के   आंगन  में उत्सव   के  साथ  सावन  की  सौगात  बारिश   में   झूमता -  गाता   बालदल कागज   की    कश्ती    बनाता    और

जिंदगी की राहें

हर दिन की तरह आज का भी दिन अपने में नया है अनेक संभावनाओं अवसरों को लिए आज का दिन भी दरवाजे पर दस्तक दिए खड़ा है , कल पर छोड़कर क्या फायदा कल किसने देखा है ? तो फिर जरुरत है तो बस अपने आज को संवारने की , बीते कल से उतना ही लो जितना की ठीक हो जिंदगी की गाड़ी अपनी सही रफ्तार के साथ चलती रहे वर्ना ज्यादा बोझा लेकर चलने से सफर का कोई मतलब ही नहीं रहे जाता है

सुप्रभात !

सुप्रभात ! आज मेरे ब्लॉग प्रियाहिंदीवाइब की प्रथम वर्षगांठ है 9 जुलाई , 2024 को स्वरुप में आए ब्लॉग की आज 9 जुलाई , 2025 को पूरे एक वर्ष हो गए है । शुरुआत के दिनों से लेकर अब तक का सफर केवल रचनाओं के प्रकाशन तक ही सीमित न रहा , बल्कि इस सफर में अनेक मोड़ आए और उनके साथ ही अनेक अनुभव भी कई नई चीजें सीखने को मिली , ब्लॉग जगत

जिसमें मैं बंधी बँधकर जो दीप बनी

वह बिंब जिसमें मैं बँधी , बँधकर भी स्वतंत्र सदा  आत्मरुप निर्बंध रही , वही सच्चा बंधन था जिसे मैंने कभी तोड़ा नहीं  जिसका मोह मैंने कभी छोड़ा नहीं आँधियों की झंझा में भी उर में जलता रहा विश्वास का दीप अखंड

जब सबकुछ है

जब सबकुछ है , तो उदासी का ये रुप थोड़ा - थोड़ा परेशान करता  मैं नहीं जानती , क्या बात है जो मन व्यथित बार - बार उदोलित होता है  दिशाएँ प्रवर दाहक चिंगारियों की छटकन आज भी कहाँ इस अंतर्द्वन्द्व का अंत हुआ है आज भी अपने उत्तर का याचक रहा प्रश्न

देखो न माता का प्यार

तपती  धूप   में  मिल  जाए   हरे  -  भरे  पेड़ों  की  छाँव  कहीं रुक   जाना   तुम   मेरे   लाल  वहीं  बैठकर   उनके   पास    तुम्हे   मिलेगी   शीतल   मंद  बयार तितलियों   की   सुरगुराहट और    पक्षियों    की   चहचहाहट  चींटियों   की    लंबी    दृढ़संकल्पबध्द   कतार कदाचित  मिल  जायेंगे   वहीं   बैठे   कुछ  और   पथिक

जब आरंभ और अंत सबका एक

क्यों   सदैव   जीत   का   ही   चस्पा   चाहिए  कभी  दूसरों  की  खुशी  के  लिए  हारकर  भी  तो  देखिए  जीत  से  कई   बढ़कर   सुंदर   उत्साहजनक   सुख  देनेवाली   आपकी  ये  हार  होगी  और  आप  हारकर  भी  जीत  जायेंगे कभी  खोयी  हुई   उन  आवाजों  को  भी  सुनना   जो

सघन छायादार वृक्षों के नीचे

सघन छायादार वृक्षों के नीचे शांति का प्रवाह शीतलता की मंद बयार मिलती है जो आज के ए०सी० कूलर पंखों से कई बढ़कर होती है भावनाओं से भरा वह वृक्ष सजीव  ममत्व सुकोमल गुण से संपन्न  बिना किसी भेदभाव के अपना र्स्वस्व देता है   धूप में छाया अरु भूखे को फल देता है  सौरभ सुगंधित पुष्प करते जो तृप्त मन को