जब आरंभ और अंत सबका एक

क्यों   सदैव   जीत   का   ही   चस्पा   चाहिए 

कभी  दूसरों  की  खुशी  के  लिए  हारकर  भी  तो  देखिए 

जीत  से  कई   बढ़कर   सुंदर   उत्साहजनक   सुख  देनेवाली  

आपकी  ये  हार  होगी  और  आप  हारकर  भी  जीत  जायेंगे

कभी  खोयी  हुई   उन  आवाजों  को  भी  सुनना   जो

शायद   हाईलाइटस   से   दूर  है   वे   आवाज   जिनकी

पहचान    इस   नई   चकाचौंध   में    धुँधलकी    पड़   गई   है

और    स्वर    भीतर    ही    सिमटकर    चुप    हो   गया   है

कभी   अपने   आसपास   के   शोरगुल   से   दूर    जाकर

तुम  अपने  को  उस  स्थान   पर  जानकर   किसी   दूसरे  के  

दुख -  दर्द   को   भी   शांति   से   सुनना   जैसे   माता  सुनती

है   अपने   बच्चे    की    कही   हुई   हर   छोटी  -  बड़ी   बात

उसकी    छोटी   सी   खुशी   में    खुलकर   भाग   लेना

जरुरत   क्या   है    व्यर्थ   दिखावटी   झूठे   आडम्बरों   की

जब   हम   सब   एक   ही    माता   की   संतान    है

फिर   कैसा   जातिभेद   और   कैसा   धर्मभेद

क्यों    समाज    में    स्त्री  -   पुरुष    मतभेद

क्या   कोई   अमीर   और   क्या  कोई   गरीब 

जब  आरंभ   और   अंत   सबका   एक  ... ।

टिप्पणियाँ

  1. सुंदर वैचारिकी अभिव्यक्ति।
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. समाज में सद्भाव बढ़ाने की ओर प्रेरित करता सार्थक सृजन

    जवाब देंहटाएं
  3. अक्सर हम जीत की चाह में हम दूसरे लोगों की खुशी को नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि हारकर भी हम अंदर से जित सकते हैं। सच में जब हम किसी की परेशानियों को समझते है और उसके साथ खड़े रहते है उस मुश्किल पल में तो अंदर से सच में एक सुकून मिलता है। सच कहूं तो, ये भाई-बहन, जाति-धर्म की दीवारें तोड़ने वाली सोच चाहिए हमें, ताकि सब मिलकर खुशी से जी सकें।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

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