ये चुनौतियाँ ये मुश्किलें

चलते   चलते    राहों    में   मुश्किलें  

हमसफर   बन    जाती   है

मंजिल   से    कई    ज्यादा    ये   

चुनौतियाँ    दिल   को   भाती  है 

यही     तो    सिखाती    है

गिरकर   सँभलना   ,   विश्वास   के   साथ 

फिर   आगे   बढ़ना  ,   औरों   पर   तो

हर   कोई   ठठा   मार   हँस   लेता   है  ,

खुद  पर  हँसना  यही  पथ  हमें  सिखलाता  है ,

तपती    धूप     में    तपा   स्वर्ण    बनाता   है ।

अन्न -  जल   दाना -  पानी   की   इज्जत  

करना   भी   यही    सिखलाता   है । 

जब   मंजिल   की   तलाश   में  

कई   -  कई   दिन  भूखों   सोना  पड़ता  है 

पेट   में   मरोड़े   उठते   है  

पानी   से   काम   चलाना   पड़ता   है 

और    जब    पानी   भी   ना   हो   तो  ,

वे    दिन    आते   है   याद  

जब   अम्मा    खाना   लिए   लिए   

पीछे  -  पीछे   भागा   करती    

एक    हाथ   से   अचला   सँभाले 

दूजे   में   खाने   की   थाली  

लिए    बड़े    दुलार   से   पुचकारती 

अ  जा    अ जा    माखनमिश्री   खायेंगे

जोर   मलाई    रबड़ी    खायेंगे  

हर    बुराई    को    दूर    भागयेंगे

इन्हीं    यादों   को    कर    याद  

सो    जाते   ,   अम्मा   खुद   आ   जाती   है

लोरी   गाकर   सुलाने   तभी   नहीं  देखते

कि   उम्र   चढ़   गई   है  ,  बस   माँ   के   लिए 

बच्चा    बच्चा   ही    है   और    

बच्चे   के   लिए   माँ   माँ   है 

वहीं    इस    तकलीफ   में   सुला   जाती  है ,

अगले   दिन   के   लिए     

एक   आस   जगा   जाती  है 

अभी   सो   जाओ  ,  सुबहा   कड़ी  मेहनत

करना  है ,  और   कुछ   कमाना   है  ,

अपनी   इस   अवस्था   को   उघम   से

पार   लगाना  है ।  

उघम   श्रेष्ठ   है  ।   मन   में   लगन   हो

तो    हर   बाधा   आसन   हो   जाती  है ।

नामुमकिन   भी    मुमकिन   हो   जाता  है ।

खुद   पर   हौंसला   रखना   भी   यही   

तो    सिखाती   है ।

यही  वे  चुनौतियाँ   है  ,  यही  वे  मुश्किलें  है ,

जो    मानव   को   सही   अर्थों   में   मानव

बनाती   है  ,   उसे   जीवन   जीना 

सिखलाती   है  ।  

यहीं   पुरुषार्थ   सिध्द   होता   है  ।

यहीं   पर   चारों  धामों    का   दर्शन   होता  है ।

सप्त   कमल   सुसज्जित   सरोवर   भी

इस   पथ   पर   मिलता   है ,

जिसका   वर्णन   शब्दों   में   नहीं   बँधता  है  ,

वहाँ   अनुभूति   की   सरिता   बहती   है ।

गंगा  जमुना  सरस्वती   का   संगम

मन   को   निर्मल   करता  

दर्पण   सम   अंतस्तल   में   उतरता   है ।

हर   संशय   मिट   जाता   है  ,

यही   वो   पथ   है  ,   जहाँ   से   मोक्ष  द्वार

खुल   जाता   है ।

इसलिए   ये   चुनौतियाँ   मुश्किल   नहीं

अंतरंग   विश्वास   है  ,  कि   ये   मानव

को   और   निखारेंगी  ।

उसे  उसके  आत्मरुप  से  परिचित  करायेंगी

उसे   उसकी   मंजिल   से   मिलायेंगी ..!

●  इसे   भी   पढ़े  -  आगाज

 

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर और.जीवन को सकारात्मकता से जीने के लिए प्रेरित करती सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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