अबकी सावन
शून्य में पयोद फिर बरसे
धरती की चुनर हरी हो
खग कलरव के मिसबोल हो
खेतों बाग - बगान में खिलकती हो मुस्कान
अरमान दिल के जो गुप , आज सारे पूरे होते हो
गायों का रँभाना और ग्वाल बाल का बंसी बजाना
इस बरखा ऋतु चहुँओर हरियाली फिर हो ।
गाँव की मिट्टी में एक सौंध सी अलख जगाती
तन - मन माटी होने का एहसास कराती
विद्रुमों पातों पर मुक्ता का चंचल नृत्य
पुष्षों पर बूँदें ये जीवन की टपटप साज
भूले - बिछड़ों को जो फिर मिलाती
मेला घर के आँगन में सजाती
हर घर , हर गली , हर मुहल्ले , हर दिल को
ये बारिश की बूँदे मिलाती सावन की याद दिलाती
कजरी के मीतबोल सुनाती ।
अब की सावन मेरे लोगों भूल न जाना
इस अमृत वर्षा की एक - एक बूँद को सँभालना
व्यर्थ न जावे , जल पुनर्भरण की तकनीक अपनाना
जल है तो कल है , जल जीवन का आधार
यह संदेश जनमन तक पहुँचाना ।
जल संरक्षण और ग्रामीण परिवेश में वर्षा ऋतु का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंसार्थक,महत्वपूर्ण संदेश देती बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमन खो गया...सुंदर सृजन
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