जब सबकुछ है

जब सबकुछ है , तो उदासी का ये रुप

थोड़ा - थोड़ा परेशान करता 

मैं नहीं जानती , क्या बात है जो मन

व्यथित बार - बार उदोलित होता है 

दिशाएँ प्रवर दाहक चिंगारियों की छटकन

आज भी कहाँ इस अंतर्द्वन्द्व का अंत हुआ है

आज भी अपने उत्तर का याचक रहा प्रश्न

( ? ) वहीं ज्वलंत , समानता से दूर हम

असमानता को ही गढ़ रहे है 

मानवीय सद्भाव परपीड़ा का दुख भूल  

राहों में बिछा रहे जो शूल

संवेदना करुणा प्रीति का स्त्रोत अंतस्तल 

अपने से जा दूर वह अपने से भी अवश्य 

उपेक्षित हुआ मानव मानव से दूर हुआ 

बाँधी सीमाएँ बँधनों के कटीले तार लगाए 

पूरी तैयारी कर कारागार सजाए अपने ही  

हाथों अपनों पर विध्वंसक तलवार चलाए

क्या प्रगति की आँधी का इतना तेज 

इतना निर्मम अभिशप्त परिवर्तन जो वह 

अपने  वास्तविक स्वरुप को ही भूल जाए 

निज शक्ति सार्मथ्य प्रेम दया त्याग और  

करुणा की दे दी है जिसने बलि

अब विज्ञान को खिलवाड़ बनाए 

दुःखित द्रवित जिनकी सिसक रही बंद

आवाजें आज भी अतीत में  कराहती 

उस महाविनाशक स्थिति को देख सुनकर भी  

ये मदमाती अबतक कुछ समझ न पाए 

प्रथम , द्वितीय और अब कितने विश्वयुद्ध 

जो अपने पलभर के अहंकार में फिर वहीं

अनेक अश्रुओं से सृजित रक्तिम इतिहास को

लगे है दोहराए …।  


टिप्पणियाँ

  1. इतिहास से सबक लेना सीख ही नहीं पाती है दुनिया,,,करे कोई भरे और,,,दो सांडों की लड़ाई में आखिर बागड़ ही नुकसान होता है,,,,
    बहुत अच्छी रचना,,,

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  2. सच में, जब दुनिया के पास सब कुछ है, फिर भी अंदर से ये उदासी क्यों छुपती है, ये समझना मुश्किल होता है। और ये लाइन “अपने से जा दूर वह अपने से भी अवश्य” तो कमाल की है, जो हमें ये दिखाती है कि हम खुद ही अपनी ज़िंदगी में दूरी बना लेते हैं। सही लिखा है की विज्ञान और प्रगति के नाम पर हम अपनी असली भावनाओं और मानवीयता को खो रहे हैं। ये कविताएं हमें याद दिलाती हैं कि इंसानियत को कभी मत भूलना चाहिए, वरना इतिहास के वो काले पन्ने फिर से खुल जाएंगे।

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन चिंतन के साथ लिखी गई बहुत सुन्दर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रथम , द्वितीय और अब कितने विश्वयुद्ध

    जो अपने पलभर के अहंकार में फिर वहीं

    अनेक अश्रुओं से सृजित रक्तिम इतिहास को

    लगे है दोहराए …।
    सही कहा आपने पर मिथ्या अहंकार के चलते इन्हें कहाँ समझ आता है ...सब सियासी खेल हैं । विध्वंस के आँकड़े छुपाकर जीत के जश्न को तैयार आकाओं की मानसिक वृत्ति को क्या ही कहें ।
    बहुत ही संवेदनशील सृजन ।

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