जनपथ बहुराती

संकेत संकेतक कभी शुभ समाचार की

कभी किसी अनहोनी अनिष्ट की

दोनों ही रहस्य भविष्य के गर्भ में छिपे है

जिसको उस त्रिकालदर्शी के सिवा मैंने क्या

किसी ने भी नहीं देखा ,

तो सुख- दुख के तराजू बराबर है

दिन के बाद रात, रात के बाद दिन

कोई बाधा नहीं ,

फिर अस्वीकार कैसा

क्योकर बेतुके , झूठ की गर्द में छिपे तर्क

हमेशा सुख ही सुख मिले  

दुख के एक काँटे से लँगड़ा जाए 

या सुख को झुठला दुख में खुद को ले जलाए

दोनों ही स्थितियाँ प्रकृति के विपरीतगामी है

दोनों ही राहु केतु  बन  सूर्य चंद्र सम जीवन को ग्रस्त है 

अबूझी चिंता बनकर ,

एक समय तक ही अंधकार रहता  

जैसे ही दीपक की लौ कोई बार देता

चेतना का उदय हो , चिंता चिंतन में बदल जाती

हारे मन को प्रभा मिले , हर परिस्थिति को सहर्ष स्वीकाराती

आत्म - सम्मान की अलख जगाती , जीवन को सुंदर बनाती

निज वर्तमान में रहे जनपथ बहुराती ।


टिप्पणियाँ

  1. मुझे लगता है ये पंक्तियाँ हमें बड़ी सीधी बात समझाती हैं कि सुख-दुख दोनों ही ज़िंदगी का हिस्सा हैं। अगर सिर्फ सुख ही मिले तो उसका मूल्य भी खत्म हो जाएगा और अगर दुख ही रहे तो जीवन बोझ बन जाएगा। असली संतुलन तो इन्हीं दोनों के बीच है। जब मन हार मान लेता है तो हर समस्या पहाड़ जैसी लगती है, लेकिन जैसे ही सोच बदल जाती है, वही चिंता ज्ञान का रूप ले लेती है।

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  2. सकारात्मक चिंतन को दर्शाती सुन्दर रचना ।

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