पहाड़ी ढलान पर से
सरकता सांझ का वक्त
गुलाबी लाल से सुरमाई बादल
सूरज का गोलाकार रुप
प्रत्यक्ष सीधे अब जाते - जाते
ज्यों आँखें मीचे गीत कोई
पहाड़ी गाता धुन वो जीवन
की सुनाता बंद तरानों
को बरसो छेड़े कोई अपना
याद आता अग्नि की ऊष्म
पोरे - मिलकर बोले साँवरे
यहीं कही बंसी बजाता ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आप सभी सुधी पाठक जनों के सुझावों / प्रतिक्रियों का हार्दिक स्वागत व अभिनंदन है ।