पतझड़ का पत्ता
हवा का बहाव भरा झोंका
टहिनयों से झरते पीले सूखे पते
मरते नही है , तुम रोना मत उन्हें यूँ देख
न खुद को किसी उदासी में डुबोना
न उन्मलान होना , क्या तुम जानते हो
ये टूटते पत्ते कपोल से पल्लव कोमल थे
सुरमई लाल फिर होते - होते धानी पहने चोला हरित
बारिश में झूम - झूमकर भीगे है
धूप में छाँव दी है
ये भोजन पकाते थे
जैसे माँ पकाती है भोजन
अपनों के लिए और उनकी
पाककला का हुनर
उनकी हरी मुस्कान में नजर आता था
ये लू में भी सहनशील थे
गरजती करका से बचाते
छिपाते वृक्ष को अपनी ओट से
मानो करते थे अभय और देते भरोसा
समय के सतत प्रवाह को स्वीकार कर जीने का
वे अब वृध्द है , धूप सेंकते से आज भी
आँखों को विश्रांति देते हरी शोभा ले उतरते है
जब हवा का कोई तीव्र झोंका आता है
वे बिना भीते पूरी रीत में प्रीत में
सहज होकर चल देते है , एक नवीन यात्रा की ओर
और वे जाते - जाते यही कहते है , तुम उदास मत होना
शाख पर फिर नूतन पल्लव फूटेंगे फिर से
किसलय डोलेंगे हरियाली का छाता ताने वे
फिर तुमसे मिलेंगे
मेरे प्रिय , तुम उदास मत होना
न मुझे ही लेकर रोना
क्योंकि मैं तुमसे मिलने अवश्य आऊँगा
तुम्हारी खैरो - खबर पूछने फिर जल्द ही आऊँगा
आगे के पथ के लिए तुम्हारी रोती सूरत नहीं शुभकामना चाहूँगा ..!
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