संदेश

पारिभाषिक शब्दावली

 ●   पारिभाषिक शब्दावली Anxiety                          -    चिन्ता Author                            -   लेखक  Approaching                 -    पहुँचना Affixed                           -    संबंध्दीकरण Answer                          -    उत्तर 

आचरण की सभ्यता निबंध का सार मेरे अपने शब्दों में

आचरण की सभ्यता - सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित एक ललित भावात्मक निबंध है । जो व्यक्ति के आचरण को प्रमुख बिंदु मानते हुए , उसके सुविकास की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है । सभ्यता की धुरी है व्यक्ति का आचरण उसका व्यवहार , व्यक्ति समाज की वृहत परिणिति अथवा उसकी एक इकाई है । व्यक्ति का आचरण उसके वैयक्तिक जीवन तथा उन्नति के अवसरों को हीं नहीं प्रभावित करता है वरन् पूरे समाज को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसकी उन्नति और अवन्नति का एक निर्धारक तत्व बन जाता है ।

आत्मकथा विधा की महत्वपूर्ण रचनाएँ

 ●  आत्मकथा विधा      साहित्यकार                                  साहित्य  जैन कवि बनारसीदास           -       अर्ध्दकथा भारतेंदु                              -       कुछ आप बीती कुछ जग बीती अम्बिकादत्त व्यास               -       निज वृतांत स्वामी श्रद्धानंद                   -      कल्याण का पथिक  स्वामी सत्यानंद अग्निहोत्री    -       मुझमें देव जीवन का विकास 

भारतेंदु संदेश

 ●  उन्नत  चित्त  ह्वैं  आर्य  परस्पर  प्रीति  बढ़ावै  ।      कपट  नेह  तजि सहज सत्य व्यौहार चलावै।      जब न संसरग  जात  दोस गन इन सो छूटै।      तजि विविध देव रति कर्म मति एक भक्ति पथ सब गहै।      हिय भोगवती सम गुप्त हरिप्रेम धार नितही  बहावै।       सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ भारतेंदु जी द्वारा अनुदित नाट्य कृति कर्पूरमंजरी के अंत में शुभकामना सन्देश के रूप में लिखी गयी थी।    अर्थ - कवि की इच्छा है कि सभी भारतवासी उन्नत चित्त होकर आपसी द्वेष और कटुता का त्याग कर पारस्परिक सौहार्द और भाईचारे का विकास करें। एक दूसरे के प्रति स्नेहभाव अपनाते हुए जातीय कटुता जैसे दोषों से ऊपर उठें सुपथ की ओर अपने कदम बढ़ाएं और एक कल्याणकारी और समृद्धशाली देश का निर्माण करें। सभी लोग अपने-अपने धर्म के अनुरुप अपने आराध्य की  उपासना करते हुए  , सभी धर्मों को एक समान मानते हुए। उनमें प्रतिपादित सार्वभौम और सर्वमान्य नैतिक मूल्यों को अपने जीवन मे...

शिवसंकल्पसूक्त

शुक्ल यजुर्वेद के 34वें अध्याय में शिवसंकल्पसूक्त प्राप्त होता है।  इस  मंत्र के दृष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य और  देवता मन है। शिवसंकल्पसूक्त की प्रेरणा मन को एकाग्रचित्त, संयमी और शुभसंकल्पों से युक्त बनाने की है। मन मानव के कर्मों का प्रेरक है। वहीं हमारे उन्नति और अवन्नति का कारण बनता है। हमारा मन ही समग्र ज्ञान का स्रोत होता है।  अतः इस अत्यंत तेज़वान और गतिशील मन को सम्यक गति से गम्य बनाए रखने के लिए उत्तम संकल्पों  वाला होना अपरिहार्य  रूप से आवश्यक है।  

लोक संस्कृति और लोकरंग

 लोक संस्कृति की जीवंतता का कारण उसकी सरलता, मधुरता, समाज का आपसी  सहकार का सुन्दर समन्वय और संस्कृति की जीवंतता का रंग है। यदि आज इस आधुनिक परिवेश में भी लोक संस्कृति ने अपनी सत्ता को बनाये रखा है, तो इसका कारण यह है कि उसके साथ लोक जीवन जुड़ा हुआ है। आज के इस परिवेश में लोक जीवन तेजी से बदल रहा है, पर एक स्थिरता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, अपनी कला के प्रति गहन रुचि, अपनी विरासत को विकास की ओर ले जाने की इच्छा ने इस लोक संस्कृति से जुड़े हुए इन सुन्दर रंगों को बचाकर रखा है ।

गीता का सार्वभौमिक महत्व और उसमें वर्णित गुरुपद की महत्ता

भगवद्गीता का उपदेश किसी एक विचारक या विचारकों के किसी एक वर्ग द्वारा सोची गई प्रवृत्ति या उभरती हुई किसी अधिविघक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है, यह उपदेश एक ऐसी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानवता में विश्वास करती ह   गीता भगवान श्रीकृष्ण की विमलवाणी के प्रवाह में एक ऐसा उपदेश है, जिसकी सार्वभौमिकता अक्षुण्ण है और जो धर्म के सच्चे रूप में मानव धर्म को प्रतिबिम्बित करता है।