संदेश

लीक से हटकर

कुछ    पल    ठहरके    दुनिया   की   आपाथापी   के   बाहर   भी    एक    नजर    फेरी   जाये , पध्दितयों    के    तौर -  तरीकों   के तमाम  -  सलीकों    से   बाहर  भी    झाँक    आया   जाए  ।

वक्त

  नीरवता    की    छाँह    में    कुछ    विस्तृत    मौन   रहा  अनवरत    सतत    प्रयासों    से    अनकहे    छोड़  ,   दूसरी    राहों    में    फैले    वितानों   में सरकता  -    गया    वक्त  , जा    रहा    है  ...

हिंदुस्तान हमारा है - बालकृष्ण शर्मा नवीन

कोटि - कोटि  कंठों   से   निकली     आज  यहीं   स्वरधारा  है । भारतवर्ष  हमारा  है  यह , हिंदुस्तान  हमारा  है । जिस  दिन  सबसे  पहले  जागे , नव  सृजन  के  सपने  घने ।

दीप - भाव

मौन    रहा   ,  और   कुछ   न   कहा .. शब्दों    को    निः शब्द     किया  उत्तर    को    ही    प्रश्न   किया  ? एकांतर   सीधी   सरल   रेखा   को    अन्वांतर    का    रुप    दिया । त्रासदी    की     विकट    वेदना  , विश्व   करुणा    ने    अश्रुपात   किया ।

मेरा गीत

मेरा    गीत    गाँवों    में    बसता  है । सुनना   है   ,   तो    सुनो  ....! वो    धूप    के    धान

झरोखा

झरोखा   जीवन   का   यादों   का   बातों   का बीते   वक्त   के   तरानों   का आँखें    मूँदें   इस    वक्त   को   भूल   किसी   और    ही   समय   की  दुनिया  में   जाने  का  नीम -  चमेली   की   हौंली - हौंली - सी   महक  वो   गेरू  -  गोबर   से   लिपा   मिट्टी   का   कच्चा  आँगन

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ - ( बालकृष्ण शर्मा नवीन )

कवि ,   कुछ    ऐसी   तान   सुनाओ  , जिससे   उथल - पुथल   मच  जाए  ,  एक   हिलोर   इधर   से   आए  , एक    हिलोर   उधर   से    आए ,

कनेर

मेरे    गाँव    के    किनारे    एक   कनेर   का   पेड़   है । तुम    आना    देखने   , उसकी   धानी   रंग    की    पत्ती , लम्बी   धारदार   कोमल   सीख   सरीखी ।

भारती जय विजय करे- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत

भारती  ,  जय ,  विजय    करे   कनक -  शस्य -  कमल   धरे । लंका   पदतल   शतदल गर्जितोर्मि    सागर  -  जल