हिंदुस्तान हमारा है - बालकृष्ण शर्मा नवीन
कोटि - कोटि कंठों से निकली आज यहीं स्वरधारा है ।
भारतवर्ष हमारा है यह , हिंदुस्तान हमारा है ।
जिस दिन सबसे पहले जागे , नव सृजन के सपने घने ।
जिस दिन देश - काल के दो - दो ,
विस्तृत विमल वितान तने ।
जिस दिन नभ में तारे छिटके ,
जिस दिन सूरज - चाँद बने ।
तब से है यह देश हमारा , यह अभिमान हमारा है ।
यहाँ प्रथम मानव ने खोले , निंदियारे लोचन अपने ,
इसी नव तले देखे उसने नव सृजन के सपने ,
यहाँ उठे स्वाहा के स्वर और यहाँ
स्वधा के मंत्र बने ।
ऐसा प्यारा देश पुरातन , ज्ञान निधान हमारा है ।
सतलुज , व्यास , चिनाब , वितस्ता , रावी , सिंधु -
तरंगवती , यह गंगा माता , यह यमुना गहर - लहर
रंगवती ,
ब्रह्मपुत्र , कृष्णा , कावेरी , वत्सला उमंग - मती
इनसे प्लावित देश हमारा , यह रसखान हमारा है ।
जब घटाओं ने सीखा था , सबसे पहले घिर आना ।
पहले - पहल हवाओं ने जब , सीखा था कुछ हहराना
जबकि जलधि सब सीख रहे थे , सबसे पहले लहराना ।
उसी अनादि आदि - क्षण से यह ,
जन्म - स्थान हमारा है ।
जिस क्षण से जड़ रज कण ,
गतिमय होकर जंगम कहलाए ।
जब विहँसी प्रथमा उषा वह ,
जबकि कमल - दल मुस्काए ।
जब मिट्टी में चेतन चमकाए ,
प्राणों के झोंके आए ।
है तब से यह देश हमारा ,
यह मन प्राण हमारा है ।
क्या गणना है , कितनी लंबी
हम सबकी इतिहास लड़ी ।
हमें गर्व है कि बहुत ही , गहरे हमारी नींव पड़ी ।
हमनें बहुत बार सिरजी है , कई क्रांतियाँ बड़ी - बड़ी।
इतिहासों ने किया सदा ही , अतिशय मान हमारा है ।
कोटि - कोटि कंठों से निकली आज यहीं स्वरधारा है
भारतवर्ष हमारा है , यह हिंदुस्तान हमारा है ।
व्याख्या भाग -
● कोटि - कोटि कंठों ......यह अभिमान हमारा है ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ राष्ट्रीय काव्य धारा के कवियों में से एक बालकृष्ण शर्मा नवीन की हिंदुस्तान हमारा है शीषर्क कविता से अवतरित है ।
प्रसंग -कवि अपने देश की गौरवगाथा का बखान करता है और लोगों के मानस में अपने देश के इस गौरव को हर दुष्टदृष्टि से बचाने और इसके भव्य और वैभवशालिनी स्वरुप को अक्षुण्ण रुप से बनाए रखने का भाव जगाता है।
व्याख्या - कवि कहता है कि राष्ट्रीय चेतना का एक स्वर लोगों के कंठों से गूँज रहा है और वह यह है कि - " यह भारतवर्ष , यह हिंदुस्तान हमारा है । " आतातियों की गिध्ददृष्टि के चंगुल में यह कभी नहीं आ सकता है । यह भारतभूमि तब से हम भारतवासियों की है , जब सर्वप्रथम दिन के उजियारे प्रकाश में नव सृजन के सपने सच्चे करने के प्रयत्न हेतु मानव मन प्रेरित हुआ था , जिस दिन से देशकाल रुपी विस्तृत विमल वितान ने आकार लिया था , जिस दिन से नभ में सूरज - चाँद बने थे । अर्थात सृष्टि के प्रारंभ से ही यह देश हमारा है और यह हमारा अभिमान एवं गर्व है कि यह भारतवर्ष हमारी जननी मातृभूमि है ।
यहाँ प्रथम मानव ........ यह रसखान हमारा है ।
संदर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ राष्ट्रीय काव्यधारा के कवियों में प्रमुख बालकृष्ण शर्मा नवीन की हिंदुस्तान हमारा है - शीषर्क कविता से अवतरित है ।
प्रसंग - कवि अपने भारत देश का गौरव उजागर करता हुआ कहता है कि यहीं वह भारतवर्ष है जो विश्व मानचित्र पर सबसे प्राचीन , अग्रणीय संपन्न और सांस्कृतिक विवधता व वैभव और पुरुषार्थ से समृध्दशाली देश के रुप में जाना जाता है ।
व्याख्या - कवि कहता है कि इस देश का इतिहास अत्यन्त पुरातन है । यहीं वह भूमि है , जहाँ मानव ( ब्रह्म ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति ) ने अपने आप को जाना था । अपनी क्षमता को पहचाना और ईश्वर के सान्निध्य में स्वयं को अर्पित कर विश्वकल्याण की भावना से ओत-प्रोत होकर वेदों की ज्ञान राशि को अस्तित्व दिया था ।इसी नभतल के नीचे बैठकर मानव ने जीवन के अनेक सुन्दर सृजनात्मक स्वप्न देखे और उन्हें साकार रुप देने का प्रयास हुआ । यहीं पर सर्वप्रथम ज्ञान - विज्ञान का सम्यक् स्वरगान हुआ ।यहीं सर्वप्रथम सभ्यता का विकास हुआ और जिसका आलोक संपूर्ण विश्व में आलोकित हुआ। यह भारतभूमि महान है । यह देश हम भारतवासियों को अपने प्राणों से भी प्यारा है । यहां सतलुज , व्यास , चिनाब , वितस्ता , रावी , सिंधु जैसी जीवन को तरंग देने वाली नदियाँ बहती है । यहाँ पर गंगा माँ और यमुना माँ विस्तृत रुप में प्रवाहित होकर सैकड़ों जीवधारियों का पालन-पोषण करती हुई , जीवन का रंग भरती हुई अपनी ममतामयी गति से सदा गतिशील बनी रहती है । इसके अतिरिक्त ब्रह्मपुत्र , कृष्णा , कावेरी जैसी नदियाँ भी यहाँ विघमान है , जो अपने वत्सलामयी रुप से जीवन को सींचती हुई । उसमें उत्साह के रंग भरती है । इन पवित्र नदियों से प्लावित यह भारतभूमि हमारी है । यह हमारा गौरव , हमारी निधि है , जोकि अतुल्य है ।
जब घटाओं ने ....... यह मन प्राण हमारा है ।
संदर्भ - ओजस्वीभावपूर्ण मातृभूमि जननी के अन्नय उपासक कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रसिध्द कविता - हिंदुस्तान हमारा है - शीषर्क कविता से अवतरित काव्य - पंक्तियाँ ।
प्रसंग - कवि मातृभूमि की वंदना कर उसकी विमल प्रशस्ति का गौरवगान करता है ।
व्याख्या - कवि कहता है कि यह भारतभूमि तब से अस्तित्व में है , जब सृष्टि की क्रिया संपूर्ण हो रही थी । जब सर्वप्रथम बादलों की घटा छायी थी। जब वायु की लहर ने गति पायी थी । जब समुद्र की लहरों ने लहराना सीखा था । उसी अनादि - आदि काल से यह देश हमारा है । इस देश का अस्तित्व तब से अक्षुण्ण बना हुआ है , जब से जड़ - चेतन का बोध हुआ था । जब से सूर्य की उषा विस्तृत हुई और कमलदलों का प्रस्फुटन हुआ। जब मिट्टी से जीवन को रंग देनेवाले विविध पेड़- पौधों का अंकुरण हुआ। तब से ही इस देश का अस्तित्व बना हुआ है । यह भारत देश हमारी आत्मा , हमारा मन - प्राण है । जिससे हमें कोई वंचित नहीं कर सकता ।
क्या गणना है ....... यह हिंदुस्तान हमारा है ।
संदर्भ - ओजस्वीभावपूर्ण मातृभूमि जननी के उपासक कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रसिध्द कविता - हिंदुस्तान हमारा है - शीषर्क से अवतरित काव्य - पंक्तियाँ ।
प्रसंग - कवि भारत देश का अभिवादन कर उसके चरणों की वंदना करता हुआ कहता है ,
व्याख्या - कवि कहता है कि इस देश का इतिहास अत्यन्त पुरातन और गौरवमय है । हमको इस बात पर गर्व अनुभव होता है कि यहाँ की पवित्र पावनभूमि में हमारा जन्म हुआ , जहाँ पर सर्वप्रथम संस्कृति व सभ्यता की नींव रखी गई थी। यहाँ का इतिहास अनेक क्रांतिगाथाओं से भरा हुआ है , जो अत्याचार के शमन के लिए बुलंद हुई थी । पुनः इसका गौरव अत्यन्त महान और तेजस्वी रही है । यह भारत देश हमारा है । यह हिंदुस्तान हमारा है।
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