शांतिमंत्र
मन को नकरात्मक विचारों से मुक्त कर सकरात्मक ऊर्जा का संचार कर पूर्ण परमब्रह्म परमेश्वर की ओर हमारा ध्यान एकाग्रचित्त करने के लिए यह शांतिपाठ अत्यन्त सहायक है । इस मंत्र के उच्चारण और ध्यान से हमें प्रतिदिन के कार्यों और चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना करने में सहायता मिलती है -
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।
सुबोध शब्दार्थ -
ॐ - सर्वरक्षक परमेश्वर
अदः - वह परमब्रह्म
पूर्णम् - पूर्ण है
इदम् - यह ( जगत भी )
पूर्णम् - पूर्ण है
पूर्णात् - उस पूर्ण परमब्रह्म से
पूर्णम् - पूर्ण है
उदच्यते - उत्पन्न हुए है
पूर्णस्य - पूर्ण के
पूर्णम् - पूर्ण को
आदाय - निकाल लेने पर भी
पूर्ण - पूर्ण
एव - हीं
अवशिष्यते - शेष रहता है ।
हिन्दी अनुवाद - वह सर्वरक्षक परमब्रह्म परमेश्वर पूर्ण है । यह जगत भी उस परमब्रह्म परमेश्वर से पूर्ण है । इस प्रकार परमब्रह्म परमेश्वर की पूर्णता से यह जगत पूर्ण है । इस पूर्ण परमब्रह्म परमेश्वर से पूर्ण निकाल लेने पर भी पूर्ण हीं शेष रहता है ।
भावाभिव्यंजना - इस जगत में जो भी चराचरात्मक है , उन सबमें परमब्रह्म परमेश्वर पूर्ण रुप में व्याप्त है । यह समस्त सृष्टि पूर्ण परमब्रह्म से हीं उत्पन्न हुई है और उसी से परिव्याप्त है । इसका कोई भी अंश उससे अछूता नहीं है । अतएव समस्त जगत में ईश्वर की परिव्याप्ति को जानकर अनासक्त भाव के साथ कर्मों में प्रवृत्त होना चाहिए । जिस प्रकार शून्य में से शून्य निकाल देने पर शून्य हीं शेष बचता है । उसी प्रकार पूर्ण परमब्रह्म परमेश्वर के पूर्ण को पूर्ण से निकाल लेने पर पूर्ण हीं शेष रहता है ।
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