आपनो लाल ललना की
शांत स्फुरित मन मलयज सा प्रेमानंद
लहर बन गह्वर देती समीरण
ऊँची - ऊँची तरंग
फेनिल चक्रवात दुधिया
मथथा मटके में ज्यों
दधि - माखन
मिश्री घुलती अदृश्य
करुणा सी स्नेह भर - भर लुटाती
आँचल की ओट में छिपा
संसार की नजरों से बचा
नंदगोस्वामी नजर न लग जाये तोहे !
जसोदा लेत बलिया ... आपनो
लाल ललना की । उर मन रहे - रहे
देखत अरु हरषाती ... ब्रह्माण्ड जग
जीवन जन्म - जन्म का सार
इस एक पल में पाती ।
मोक्षद्वार पर जे खड़ी
जसोदा संसार का सबसे
बड़ा सुख इस इक पल
में पाती ... अपने ललना को
मैया हिबड़े से लगाती ।
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