तालमेल हीं जुदा है ।
आजकल यहीं मसल्ला गर्म है ।
बच्चों के भविष्य को लेकर
माँ - बाप चिंतामग्न है ।
एक - पीढ़ी दूजी पीढ़ी तीसरी पीढ़ी
के बीच संघर्ष का व्यवधान बड़ा है ।
कहाँ जाए किससे कहे अपनी दुविधा
जब आपसी समझ का
तालमेल हीं जुदा है ।
बदला जमाना बदला नजरिया
टूटते रिश्ते टूटते परिवार
सब पर पश्चिमी सभ्यता का
रंग सवार है ।
स्वतंत्रता की करते है ये पुकार
पर मायनों से कोसों दूर है ।
संस्कारों की घुट्टी छलनी हुई है ।
सद्विचारों से जा दूर गिरे
अपनों का साथ भूले
अक्ल पर जैसे पड़े हो
परदे ! अपनी सहूलियत ,
अपना अहं , विनम्रता को लगा डाला
ताला । इतना सबकुछ हो रहा
लाखों मुकदमें परिवार के
लोक - अदालतों की कतार में
अब घर की बात बनती बाजार में ।
देखो ना फिर भी समझ नहीं
आती इनको बात ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आप सभी सुधी पाठकों के सुझावों का हार्दिक स्वागत है ।